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________________ सामित्ताणुगमो ( एदेसिं बंधयाणं परूवणट्ठदाए तत्थ इमाणि एक्कारस अणियोगदाराणि णादव्वाणि भवंति ॥ १॥) अणद्धेसु' बंधएसु कधमेदेसिं बंधयाणमिदि पच्चक्खणिदेसो उववज्जदे १. ण, एस दोसो, बंधगविसयबुद्धीए पच्चक्खत्तमवेक्खिय पच्चक्खणिदेसुववत्तीदो। संताणियोगद्दारं पुव्वमपरूविय तेण सह बारसअणियोगद्दारेहि बंधगाणं किण्ण परूवणा कीरदे ? ण, बंधगत्तेण असिद्धाणं तस्सिद्धिपरूवणाए बंधगपरूवणत्ताणुववत्तीदो । तेसिमेक्कारसअणियोगद्दाराणं णामणिदेसट्टमुत्तरसुत्तं भणदि एगजीवेण सामित्तं, एगजीवेण कालो, एगजीवेण अंतरं, णाणाजीवेहि भंगविचओ, दवपरूवणाणुगमो, खेत्ताणुगमो, फोसणाणुगमो, णाणाजीवेहि कालो, णाणाजीवेहि अंतरं, भागाभागाणुगमो, अप्पाबहुगाणुगमो चेदि ॥ २ ॥ इन बन्धकोंके प्ररूपणार्थ ये ग्यारह अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं ॥१॥ शंका-बन्धकोंके उपस्थित न होनेपर भी ‘इन बन्धकोंका' इस प्रकार प्रत्यक्ष निर्देश कैसे उपयुक्त ठहरता है ? समाधान-यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, बन्धकविषयक बुद्धिसे प्रत्यक्षत्वकी अपेक्षा करके प्रत्यक्ष निर्देशकी उपपत्ति बन जाती है। शंका-सत् अनुयोगद्वारको पहले ही प्ररूपित न करके उसके साथ बारह अनुयोगद्वारोसे बन्धकोंकी प्ररूपणा क्यों नहीं की जाती ? समाधान नहीं, क्योंकि बन्धकभावसे असिद्ध जीवोंको बन्धक सिद्ध करनेवाली प्ररूपणाके लिये बन्धकप्ररूपणा नाम देना अनुपयुक्त ठहरता है। उन ग्यारह अनुयोगद्वारोंके नामनिर्देशके लिये आचार्य अगला सूत्र कहते हैं एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व, एक जीवकी अपेक्षा काल, एक जीवकी अपेक्षा अन्तर, नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, द्रव्यप्ररूपणानुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शनानुगम, नाना जीवोंकी अपेक्षा काल, नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर, भागाभागानुगम और अल्पबहुत्व ॥२॥ १ मप्रतौ । अणत्थे', कातौ ' अणद्वेसु' इति पाठः।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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