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५३२ छक्खंडागमै खुदाबंधी
[२, ११, १३. __ अकाइया अणंतगुणा ॥ ४३ ॥
एत्थ गुणगारो अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो । कुदो ? असंखज्जलोगमेत्तवाउक्काइयभजिदअकाइयप्पमाणत्तादो ।
वणप्फदिकाइया अणंतगुणा ॥४४॥
एत्थ गुणगारो अभवसिद्धिएहितो सिद्धेहिंतो सबजीवाणं पढमवग्गमूलादो वि अणंतगुणो । कुदो ? अकाइएहि भजिदसगअणंतभागहीणसव्वजीवरासिपमाणादो । अण्णेण पयारेण छण्हं कायाणमप्पाबहुगपरूवणमुत्तरसुत्तं भणदि
सव्वत्थोवा तसकाइयपज्जत्ता ॥ ४५ ॥ कुदो ? पदरंगुलस्स असंखेज्जदिमागेणोवहिदजगपदरपमाणत्तादो । 'तसकाइयअपज्जत्ता असंखेज्जगुणा ॥ ४६॥
एत्थ गुणगारो आवलियाए असंखेज्जदिभागो। कुदो १ पदरंगुलस्स असंखेअदिभागेणोवट्टिदजगपदरमेत्ता तसकाइयअपज्जत्ता त्ति दवाणिओगद्दारे परूविदत्तादो ।
वायुकायिकोंसे अकायिक जीव अनन्तगुणे हैं ॥ ४३ ॥
यहां गुणकार अभव्यसिद्धिक जीवोंसे अनन्तगुणा है, क्योंकि, वह असंख्यात लोकमात्र वायुकायिकोंसे भाजित अकायिक जीवोंके बराबर है।
अकायिकोंसे वनस्पतिकायिक जीव अनन्तगुण हैं ॥ ४४ ॥
यहां गुणकार अभध्यसिद्धिक, सिद्ध और सर्व जीवोंके प्रथम वर्गमूलसे भी अनन्तगुणा है, क्योंकि, वह अकायिक जीवोंसे भाजित अपने अनन्त भागसे हीन सर्व जीवराशिप्रमाण है । अन्य प्रकारसे छह काय जीवोंके अल्पबहुत्वके निरूपणार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं
त्रसकायिक पर्याप्त जीव सबमें स्तोक हैं ॥ ४५ ॥ - क्योंकि, वे प्रतरांगुलके असंख्यातवें भागसे अपवर्तित जगप्रतरप्रमाण है। त्रसकायिक पर्याप्तोंसे त्रसकायिक अपर्याप्त जीव असंख्यातगुणे हैं ॥ ४६॥
यहां गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, 'प्रतरांगुलके असंख्यातवे भागसे अपवर्तित जगप्रतरप्रमाण त्रसकायिक अपर्याप्त जीव हैं ' ऐसा द्रव्यानुयोगद्वारमें प्ररूपित किया है।
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