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________________ २, ११, ६.] अप्पाबहुगाणुगमे गदिमगणा [५२१ गुणगारो असंखेज्जाणि सूचिअंगुलाणि पदरंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणि । कुदो ? मणुसअवहारकालगुणिदणेरइयविक्खंभसूचिपमाणत्तादो। कधमेदस्स आगमो ? पमाणरासिणोवट्टिदफलगुणिदिच्छादो । देवा असंखेज्जगुणा ॥४॥ एत्थ गुणगारो असंखेज्जाणि सेडिपढमवग्गमूलाणि । कुदो ? णेरइयविक्खंभसूचिगुणिददेवअवहारकालेण भजिदजगसेडिपमाणत्तादो । सिद्धा अणंतगुणा ॥ ५॥ कुदो ? देवोवट्टिदसिद्धेसु अणंतसलागोवलंभादो । तिरिक्खा अणंतगुणा ॥६॥ कुदो ? सिद्धेहि ओवदितिरिक्खेसु जीववग्गमूलादो सिद्धेहिंतो च अणंतगुणसलागोवलंभाशे । एदाओ पुण लद्धगुणगारसलागाओ भवसिद्धियाणमणंतभागो। कुदो ? तिरिक्खेसु पदरस्स असंखेज्जदिभागमेत्तजीवपक्खेवे कद भवसिद्धियरासिपमाणुप्पत्तीदो। ___ यहां गुणकार प्रतरांगुलके असंख्यातवें भागमात्र असंख्यात सूच्यंगुल हैं, क्योंकि, वे मनुष्योंके अवहारकालसे गुणित नारकियोंकी विष्कम्भसूची प्रमाण हैं । शंका-यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-क्योंकि, फलराशिसे गुणित इच्छाराशिको प्रमाणराशिसे अपवर्तित करनेपर उक्त प्रमाण पाया जाता है। नारकियोंसे देव असंख्यातगुणे हैं ॥ ४ ॥ यहां गुणकार असंख्यात श्रेणी प्रथम वर्गमूल है, क्योंकि, वे नारकियोंकी विष्कम्भसूचीसे गुणित देवअवहारकालसे भाजित जगश्रेणीप्रमाण हैं। देवोंसे सिद्ध अनन्तगुणे हैं ॥५॥ क्योंकि, देवोंसे सिद्धराशिके अपवर्तित करनेपर अनन्त शलाकायें उपलब्ध होती हैं। सिद्धोंसे तियेच असंख्यातगुणे हैं ॥ ६ ॥ क्योंकि, सिद्धोंसे तिर्यचोंके अपवर्तित करनेपर जीवराशिके वर्गमूल और सिद्धोसे भी अनन्तगुणी शलाकायें उपलब्ध होती हैं। किन्तु ये लब्ध गुणकारशलाकायें भव्यसिद्धिकोंके अनन्तवें भागमात्र होती हैं। क्योंकि, तिर्यंचोंमें जगप्रतरके असंख्यातवें भागमात्र जीवाका प्रक्षेप करनेपर भव्यसिद्धिकराशिका प्रमाण उत्पन्न होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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