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________________ अप्पा बहुगाणुगमो अप्पा बहुगागमेण गदियाणुवादेण पंचगदीओ समासेण ॥१॥ अप्पा बहुगणिद्देसो से साणिओगद्दार पडिसेहफलो । गदिणिद्दे सो से समग्गणड्डाणपडिसेहफलो । गई सामण्णेण एगविहा । सा चैव सिद्ध गई (असिद्ध गई ) चेदि दुविहा | अहवा देवगई अदेवगई सिद्धगई चेदि तिविहा | अहवा णिरयगई तिरिक्खगई मणुस गई देवगई चेदि चउन्त्रिहा | अहवा सिद्धगईए सह पंचविहा । एवं गइसमासो अणेयमेयभिष्णो । तत्थ समासेण पंचगदीओ जाओ तत्थ अप्पाबहुगं भणामि त्ति भणिदं होदि । सव्वत्थोवा मणुसा ॥ २ ॥ सव्वसदो अप्पिदपंचगईजीवावेक्खो । तेसु पंचगईजीवेसु मणुस्सा चैव थोवा ति भणिदं होदि । कुदो ? सूचिअंगुलपढमवग्गमूलेण तस्सेव तदियवग्गमूलब्भत्थेण च्छिण्णजग से डिमेत्तप्पमाणत्तादो । रइया असंखेज्जगुणा ॥ ३ ॥ अल्पबहुत्वानुगमसे गतिमार्गणा के अनुसार संक्षेपसे जो पांच गतियां हैं उनमें अल्पबहुत्वको कहते हैं ॥ १ ॥ " अल्पबहुत्व ' निर्देशका फल शेष अनुयोगद्वारोंका प्रतिषेध करना है । 'गि निर्देश शेष मार्गणाओंके प्रतिषेधके लिये है । गति सामान्यरूपसे एक प्रकार है, वही गति सिद्धगति और ( असिद्धगति ) इस तरह दो प्रकार है । अथवा, देवगति, अदेवगति और सिद्धगति इस तरह तीन प्रकार है । अथवा, नरकगति, तिर्यग्गति, मनुष्यगति और देवगति इस तरह चर प्रकार है । अथवा, सिद्धगति के साथ पांच प्रकार है । इस प्रकार गतिसमास अनेक भेदोंसे भिन्न है । उसमें संक्षेपसे जो पांच गतियां हैं उनमें अस्पबहुत्वको कहते हैं यह उक्त कथनका अभिप्राय है । मनुष्य सबमें स्तोक हैं ॥ २ ॥ सर्व शब्द विवक्षित पांच गतियोंके जीवोंकी अपेक्षा करता है । उन पांच गतियोंके जीवोंमें मनुष्य ही स्तोक हैं यह सूत्रका फलितार्थ है, क्योंकि, वे सूच्यंगुलके तृतीय वर्गमूल से गुणित उसके ही प्रथम वर्गमूल से खण्डित जगश्रेणीप्रमाण हैं । नारकी जीव मनुष्यों से असंख्यातगुणे हैं ॥ ३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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