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________________ ५१२] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, १०, ५७. विभंगणाणी आभिणिबोहियणाणी सुदणाणी ओहिणाणी मण पज्जवणाणी केवलणाणी सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ ५७॥ सुगमं । अणंतभागो ॥ ५८ ॥ कुदो ? अप्पिददव्वेण सव्वजीवरासिम्हि भागे हिदे अणंतरूबोवलंभादो । संजमाणुवादेण संजदा सामाइयछेदोवट्टावणसुद्धिसंजदा परिहारसुद्धिसंजदा सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदा जहाक्खादविहारसुद्धिसंजदा संजदासजदा सब्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ ५९॥ सुगमं । अणंतभागो ॥ ६॥ कुदो ? एदेहि सव्यजीवरासिम्हि भागे हिदे अणंतरूबोवलंभादो । असंजदा सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ।। ६१ ॥ विभंगज्ञानी, आभिनिवोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवाधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी और केवलज्ञानी जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण है ? ॥ ५७ ॥ यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीव सब जीवोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं ॥ ५८ ॥ क्योंकि, विवक्षित द्रव्यका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर अनन्त रूप उपलब्ध होते हैं। ___ संयममार्गणाके अनुसार संयत, सामायिकछेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत, परिहारशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयत, यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत और संयतासंयत जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? ।। ५९ ॥ यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीव सब जीवोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं ॥ ६ ॥ क्योंकि, इनका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर अनन्त रूप प्राप्त होते हैं। असंयत जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? ॥ ६१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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