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________________ ५०६ ] छक्खंडागमे खुदाबंधो [२, १०, ३३. विरोहादो। कधमेदं णबदे ? णिगोदपदिविदाणं बादरणिगोदजीया त्ति णिदेसादो, बादरवण फदिकाइयाणमुवरि ‘णिगोदा विसेमाहिया' त्ति भणिदवयणादो च णव्वदे।) (सुहुमवणप्फदिकाइय सुहुमणिगोदजीवअपज्जत्ता सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ ३३ ॥ मुगमं । संखेज्जदिभागो ॥ ३४ ॥ क्रुदो ? एदेहि सबजीवरासिम्हि भागे हिंद संखेज्जरूवाण मुवलंभादो । एत्थ वि सुहुमवणप्फदिकाइयअपज्जत्तेहितो पुव्वं सुहमणिगोद अपज्जताणं भेदो वत्तव्यो । णिगोदेसु जीवंति णिगोद भावेण वा जीवंति ति णिगोदजीवा एवं तत्तो भेदो वत्तव्यो । णिगोदा सव्वे वणप्फदिकाइया चेव ण अण्णे, एदेण अहिप्पारण काणि वि भागाभागसुत्ताणि विदाणि । कुदो ? सुहुमत्रणप्फदिकाइयभागाभागस्म तिसु त्रि सुत्तेसु णिगोदजीव शंका---यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-निगोदप्रतिष्ठित जीवोंके 'बादर निगोद जीव' इस प्रकारके निर्देशसे, तथा बादर बनस्पतिकायिकों के आगे 'निगोद जीव विशेष अधिक है ' इस प्रकार कहे गये सूत्रवचनसे भी वह जाना जाता है । सूक्ष्म वनस्पतिकायिक व सूक्ष्म निगोद जीव अपर्याप्त सर्व जीवोंके कितनेवें भागप्रमाण हैं ? ॥३३॥ यह सूत्र सुगम है। उक्त जीव सर्व जीवोंके संख्यातवें भागप्रमाण हैं ॥ ३४ ॥ क्योंकि, इनका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर संख्यात रूप प्राप्त होते हैं। यहां भी पहले सुक्ष्म बनस्पतिकायिक अपर्याप्तोस सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तीका भेद कहना चाहिये । 'निगोदोंमें जो जीते हैं अथवा निगोदभावसे जो जीते हैं वे निगोदजीव है ' इस प्रकार उनसे भेद कहना चाहिये। शंका --- 'निगोद जीव सव वनस्पतिकायिक ही हैं, अन्य नहीं हैं। इस अभिप्रायसे कुछ भागाभागसूत्र स्थित हैं, क्योंकि, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक भागाभागके तीनों ही सूत्रोंमें निगोदजीवोंके निर्देशका अभाव है । इस लिये उन सूत्रोंसे इन सूत्रोंका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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