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________________ २, १०, ३२.1 भागाभागाणुगमे कायमग्गणा [५०५ सुहुमणिगोदजीवा ण होति त्ति । जदि एवं तो सब्वे सुहुमवणप्फदिकाइया णिगोदा चेवेत्ति एदेण वयणेण विरुज्झदि त्ति भणिदे ण विरुज्झदे, सुहुमणिगोदा सुहुमवणप्फदिकाइया चेवेत्ति अवहारणाभावादो। के पुण ते अण्णे सुहुमणिगोदा सुहुमवणप्फदिकाइये मोतूण ? ण, सुहुमणिगोदेसु व तदाधारेसु वणप्फदिकाइएसु वि सुहुमणिगोदजीवत्तसंभवादो। तदो सुहुमवणप्फदिकाइया चेव सुहुमणिगोदजीवा ण होति त्ति सिद्धं । सुहुमकम्मोदएण जहा जीवाणं वणप्फदिकाइयादीणं सुहुमत्तं होदि तहा णिगोदणामकम्मोदएण ग्रिगोदत्तं होदि । ण च णिगोदणामकम्मोदओ बादरवणप्फदिपत्तेयसरीराणमत्थि जेण तेसिं णिगोदसण्णा होदि ति भणिदे- ण, तेसि पि आहारे आहेओवयारेण णिगोदत्ता हैं, इससे जाना जाता है कि सब सूक्ष्म वनस्पतिकायिक ही सूक्ष्म निगोद जीव नहीं होते। शंका-यदि ऐसा है तो सर्व सूक्ष्म वनस्पतिकायिक निगोद ही हैं। इस वचनके साथ विरोध होगा? समाधान-उक्त वचनके साथ विरोध नहीं होगा, क्योंकि, सूक्ष्म निगोद जीप सूक्ष्म वनस्पतिकायिक ही हैं, ऐसा यहां अवधारण नहीं है । शंका-तो फिर सूक्ष्म वनस्पतिकायिकोंको छोड़कर अन्य सूक्ष्म निगोद जीव कौनसे हैं ? समाधान-नहीं, क्योंकि सूक्ष्म निगोद जीवोंके समान उनके आधारभूत ( बादर) वनस्पतिकायिकोंमें भी सूक्ष्म निगोद जीवत्वकी सम्भावना है। इस कारण सूक्ष्म वनस्पतिकायिक ही सूक्ष्म निगोद जीव नहीं होते' यह बात सिद्ध होती है । शंका-सूक्ष्म नामकर्मके उदयसे जिस प्रकार वनस्पतिकायिकादिक जीवोंके सूक्ष्मपना होता है, उसी प्रकार निगोद नामकर्मके उदयसे निगोदत्व होता है। किन्तु बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंके निगोद नामकर्मका उदय नहीं है जिससे कि उनकी 'निगोद ' संशा हो सके ? समाधान नहीं, क्योंकि बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर जीवोंके भी आधारमें आधेयका उपचार करनेसे निगोदपनेका कोई विरोध नहीं है। १ प्रतिषु 'अहिओवयारेण ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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