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२, १०, २९.] भागाभागाणुगमे कायमग्गणा ( सुगमं ।
अणंता भागा ॥ २६ ॥
कुदो १ अप्पिददव्ववदिरित्तसव्वदव्वेहि सव्यजीवरासिमवहारिय लद्धसलागाओ अणंताओ विरलिय सव्वजीवरासिं समखंड करिय रूवं पडि दिण्णे तत्थ एगरूवधरिदं मोत्तूण बहुभागेसु समुदिदेसु अप्पिदजीवपमाणदंसणादो।
बादरवणप्फदिकाइया बादरणिगोदजीवा पज्जत्ता अपज्जत्ता सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ २७ ॥
सुगमं । असंखेजदिभागो ॥ २८॥ कुदो ? एदेहि सव्वजीवरासिम्हि भागे हिदे असंखेज्जलोगपमाणुवलंभादो ।
सुहुमवणफदिकाइया सुहुमणिगोदजीवा सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ २९॥
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यह सूत्र सुगम है। वनस्पतिकायिक व निगोद जीव सर्व जीवोंके अनन्त बहुभागप्रमाण हैं ॥२६॥
क्योंकि, विवक्षित द्रव्यसे भिन्न सर्व द्रव्यों द्वारा सर्व जीवराशिको विरलित कर लब्ध हुई अनन्त शलाकाओंका विरलन कर सर्व जीवराशिको समखण्ड कर प्रत्येक रूपके प्रति देनेपर उसमें एक रूप धरित राशिको छोड़ समुदित बहुभागोंमें विवक्षित जीवोंका प्रमाण देखा जाता है।
__ बादर वनस्पतिकायिक, बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त, बादर निगोद जीव, बादर निगोद जीव पर्याप्त व अपर्याप्त सर्व जीवाक कितनेवें भागप्रमाण हैं ? ॥ २७ ॥
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीव सर्व जीवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं ॥ २८ ॥
क्योंकि, इनका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर असंख्यात लोकप्रमाण लब्ध होता है।
सूक्ष्म वनस्पतिकायिक व सूक्ष्म निगोद जीव सर्व जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? ॥ २९ ॥
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