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छक्खंडागमे खुद्दाबंधी [२, १०, २३. अणंता भागा ॥ २२॥
कुदो ? पदरस्स असंखेज्जदिभागमेत्तजीवेहि सव्वजीवरासिम्हि भागे हिदे तत्थुवलद्धस्स अणंतियत्तादो।
कायाणुवादेण पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया बादरा सुहमा पज्जत्ता अपज्जत्ता बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरा पज्जत्ता अपज्जत्ता तसकाइया तसकाइयपज्जता अपज्जत्ता सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ २३ ॥
सुगमं । अणंतभागो ॥२४॥
कुदो ? एदेहि असंखेज्जालोगमेसपमाणेहि पदरस्स असंखेज्जदिभागेहि य सव्वजीवरासिम्हि भागे हिदे अणंतरूवाणमुवलंभादो ।
(वणष्फदिकाइया णिगोदजीवा सव्वजीवाणं केवडिओ भागो? ॥२५॥)
उपर्युक्त द्वीन्द्रियादि जीव सर्व जीवोंके अनन्त बहुभागप्रमाण हैं ॥ २२ ॥
क्योंकि, जगप्रतरके असंख्यात भागमात्र जीवोंका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर वहां उपलब्ध राशि अनन्त होती है।
___ कायमार्गणाके अनुसार पृथिवीकायिक, पृथिवीकायिक पर्याप्त, पृथिवीकायिक अपर्याप्त बादर पृथिवीकायिक, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर पृथिवीकायिक अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म पृथिवीकायिक पर्याप्त, सूक्ष्म पृथिवीकायिक अपर्याप्त इसी प्रकार नौ अप्कायिक, नौ तेजस्कायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त व अपर्याप्त, तथा त्रसकायिक, त्रसकायिक पर्याप्त और त्रसकायिक अपर्याप्त जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? ।। २३ ॥
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीव सर्व जीवोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं ॥ २४ ॥
क्योंकि, जगप्रतरके असंख्यातवें भागरूप असंख्यात लोकप्रमाणवाले इन जीवोंका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर अनन्त रूप लब्ध होते हैं।
बनस्पतिकायिक व निगोद जीव सर्व जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं? ॥२५॥
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