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५.०] . . : छक्खंडागमे खुदाबंधो
[२, १०, १५. तं जहा- अप्पिदबादरएइंदिएहि सव्वजीवरासिमोवट्टिदे असंखेज्जा लोगा आगच्छति । ते विरलिय सव्वजीवरासिं रूवं पडि समखंडं करिय दिण्णे इच्छियबादरेइंदियपमाणं होदि । तम्हि तिण्णि वि बादरेइंदिया सबजीवाणमसंखेज्जदिभागमेचा त्ति परूविदा।
सुहुमेइंदिया सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ १५ ॥ सुगमं । असंखेज्जदिभागो ॥ १६ ॥
कुदो १ मुहमेइंदियवदिरित्तासेसजीवेहि सव्यजीवरासिम्हि भागे हिदे असंखेज्जा लोगा आगच्छति । ते विरलिय सयजीवरासिं समखंडं करिय दिण्णे तत्थ एगरूवधरिदं मोत्तण बहुभागेसु सुहुमेइंदियप्पहुडिउत्तपमाणुवलंभादो।
सुहमेइंदियपज्जत्ता सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥१७॥ सुगमं ।
इसीको स्पष्ट करते हैं- विवक्षित बादर एकेद्रियोंसे सर्व जीवराशिको अपवर्तित करनेपर असंख्यात लोक आते है। उनका विरलन कर सर्व जीवराशिको रूपके समखण्ड करके देनेपर इच्छित बादर एकेन्द्रियोंका प्रमाण होता है। उसमें तीनों ही बादर एकेन्द्रिय जीव सर्व जीवोंके असंख्यातवें भागमात्र हैं, ऐसा कहा गया है।
सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव सर्व जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? ॥१५॥ यह सूत्र सुगम है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव सर्व जीवोंके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं ? ॥ १६ ॥
क्योंकि, सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंको छोड़कर समस्त जीवोंका सर्व जीवराशिमें भाग देनेपर असंख्यात लोक आते हैं । उनका विरलन कर सर्व जीवराशिको समखण्ड करके देनेपर उसमें एक रूप धरित राशिको छोड़कर शेष बहुभागोंमें सूक्ष्म एकेन्द्रिय आदि उक्त जीवोंका प्रमाण पाया जाता है।
सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त जीव सर्व जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? ॥ १७ ॥ यह सूत्र सुगम है।
१ मप्रतौ ' जत्तपमाणुवलंभादो' इति पाठः।
२ प्रतिषु ' -अपज्जत्ता' इति पाठः ।
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