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४९८] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १०, ८. अवगएण पुध पुध सव्वजीवे अवहारिय लसलागमेत्तखंडाणि सव्यजीवरासिं करिय तत्थ एगभागपमाणमप्पप्पणो जीवपमाणं होदि त्ति अवहारिय एदे अट्ठ जीवभेदा सव्वा जीवाणमणंतिमभागो होदि त्ति णिच्छओ कायव्यो ।
देवगदीए देवा सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? ॥ ८ ॥
देवगदीए पुढविकाइयादिया अण्णे वि जीवा अत्थि, देवा त्ति वयणेण तेसिं पडिसेहो कदो । सेसं सुगमं ।
अणंतभागो ॥९॥
सुगममेदं, अणप्पिदपंचभंगे ओसारिय अप्पिदेकभंगम्मि उप्पादिदणिच्छयादो गहिदगहिदगणिएण पुव्यमेव जणिदप्पसंसकारादो।।
एवं भवणवासियप्पहुडि जाव सव्वट्टसिद्धिविमाणवासियदेवा ॥१०॥
" णवरि अप्पप्पणो जीवाणं पमाणमवहारिय तेण सव्वजीवरासिमोवट्टिय लद्धेण
जीवोंके प्रमाणसे पृथक् पृथक् सर्व जीवराशिको अपहृत करके लब्ध शलाकाप्रमाण खण्डरूप सर्व जीवराशिको करके उसमें एक भागप्रमाण अपना अपना जीवप्रमाण होता है, ऐसा निश्चय कर ये आठ जीवभेद सब जीवोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं, इस प्रकार निश्चय करना चाहिये।
देवगतिमें देव सब जीवोंके कितनेवें भागप्रमाण हैं ? ॥ ८॥
देवगतिमें, अर्थात् देवलोकमें, पृथिवीकायिकादिक अन्य भी जीव हैं, उनका प्रतिषेध 'देव' इस वचनसे किया है। शेष सूत्रार्थ सुगम है।।
देव सब जीवोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं ॥ ९ ॥
यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, वह अविवक्षित पांच भंगोंको हटा कर विवक्षित एक भंगमें निश्चयको उत्पन्न कराता है, तथा गृहीत-गृहीत गणितसे ( देखो पु. ३) पूर्वमें ही आत्मसंस्कार उत्पन्न हो जानेसे भी उक्त सूत्र सुगम है।
इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धिविमानवासी देवों तक मागाभागका क्रम है ॥ १०॥
विशेष इतना है कि अपने अपने जीवों के प्रमाणका निश्चय कर उससे सर्व
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१ प्रतिषु अद्ध-' इति पाठः ।
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