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२, ९, २६.
गाणाजीवेण अंतराणुगमे णाणमग्गणा सुगमं ।
कसायाणुवादेण कोधकसाई माणकसाई मायकसाई लोभकसाई (अकसाई-) णमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ३३ ॥
सुगमं । णथि अंतरं ॥ ३४॥ सुगमं । णिरंतरं ॥ ३५॥ सुगमं ।
णाणाणुवादेण मदिअण्णाणि-सुदअण्णाणि विभंगणाणि-आभिणि बोहिय-सुद-ओहिणाणि-मणपज्जवणाणि-केवलणाणीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ३६॥
सुगमं ।
यह सूत्र सुगम है।
कषायमार्गणाके अनुसार क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी, लोमकषायी और (अकषायी) जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ३३ ॥
यह सूत्र सुगम है। उपयुक्त जीवोंका अन्तर नहीं होता ॥ ३४ ॥ यह सूत्र सुगम है। वे जीवराशियां निरन्तर हैं ।। ३५ ॥ यह सूत्र सुगम है।
ज्ञानमार्गणाके अनुसार मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी, विभंगज्ञानी, आभिनिवोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी और केवलज्ञानी जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ३६ ।।
यह सूत्र सुगम है।
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