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________________ २, ८, २७.] णाणाजीवेण कालाणुगमे वेदमग्गणा [४७१ कथं णव्वदे ? उक्कस्सकालो अंतोमुहुत्तमेत्तो ति सुत्तवयणादो । आहारमिस्सकायजोगी केवचिरं कालादो होति ? ॥ २४ ॥ सुगमं । जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥२५॥ कुदो ? आहारमिस्सकायजोगचरस्स आहारमिस्सकायजोगं गंतूण सुट्ट जहण्णेण कालेण पज्जत्तीओ समाणिदस्स जहण्णकालुवलंभादो । उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं ॥ २६॥ एत्थ वि पुव्वं व संखेज्जतोमुहुत्ताणं संकलणा कायया । वेदाणुवादेण इत्थिवेदा पुरिसवेदा णqसयवेदा अवगदवेदा केवचिरं कालादो होति ? ॥ २७ ॥ सुगम । शंका- यह कैसे जाना जाता है कि उन संख्यात अन्तर्मुहूर्तोंका जोड़ भी अन्तर्मुहूर्तमात्र ही होता है ? समाधान-' उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्तमात्र है' इस सूत्रवचनसे जाना जाता है। आहारकमिश्रकाययोगी जीव कितने काल तक रहते हैं ? ॥ २४ ॥ यह सूत्र सुगम है। आहारकमिश्रकाययोगी जीव जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त तक रहते हैं ।। २५ ॥ क्योंकि, आहारकमिश्रकाययोगमें जानेवाले जीवके आहारकमिश्रकाययोगको प्राप्त होकर अतिशय जघन्य कालसे पर्याप्तियों को पूर्ण करलेनेपर (सूत्रोक्त) जघन्य काल पाया जाता है। आहारकमिश्रकाययोगी जीव उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त तक रहते हैं ॥ २६ ॥ यहांपर भी पूर्वके समान संख्यात अन्तर्मुहूर्तोंका संकलन करना चाहिये । वेदमार्गणाके अनुसार स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी और अपगतवेदी जीव कितने काल तक रहते हैं ? ॥ २७ ॥ यह सूत्र सुगम है। १ आप्रतौ' -जोगिचरस्स' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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