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________________ १३८] छक्खंडागमे खुदाबंधो [२, ७, १९१. असंजदतुल्ला ण होति, अचक्खुदंसणीसु तेजाहारपदाणगुवलंभादो । ओहिदसणी ओहिणाणिभंगो ॥ १९१ ॥ सुगमं । केवलदसणी केवलणाणिभंगो ॥ १९२ ॥ एदं पि सुगमं । लेस्साणुवादेण किण्हलेस्सिय-णीललेस्सिय-काउलेस्सियाणं असंजदभंगो ॥ १९३ ॥ सुगममेदं । तेउलेस्सियाणं सत्थाणेहि केवडियं खेतं फोसिदं ? ॥ १९४ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १९५॥ एत्थ खेत्तवण्णणा कायया वट्टमाणविवक्खाए । अचक्षुदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा असंयत जीवोंके तुल्य नहीं है, क्योंकि अचक्षुदर्शनियों में तैजस और आहारक समुद्घात पद पाये जाते हैं । अवधिदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा अवधिज्ञानियोंके समान है ।। १९१ ॥ यह सूत्र सुगम है। केवलदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा केवलज्ञानियों के समान है ॥ १९२ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। लेश्यामार्गणाके अनुसार कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले और कापोतलेश्यावाले जीवोंकी प्ररूपणा असंयत जीवोंके समान है ॥ १९३ ।। यह सूत्र सुगम है। तेजोलेश्यावाले जीवों द्वारा स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ।। १९४ ॥ यह सूत्र सुगम है। तेजोलेश्यावाले जीवों द्वारा स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ १९५ ।। . यहां क्षेत्रप्ररूपणा करना चाहिये, क्योंकि, वर्तमान कालको विवक्षा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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