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४३०] छक्खडागमे खुद्दाबंधों
[२, ७, १६५. मणुस्सेसुप्पज्जमाणाण' देवाणं उत्रवादखेतं किण्ण घेप्पदे ? ण, तस्स पढमदंडेणूणस्स छचोदसभागेसु चेव अंतब्भावादो, तेसिं मूलसरीरपवेसमंतरेण तदवत्थाए मरणाभावादो च ।
मणपज्जवणाणी सत्थाण-समुग्धादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १६५॥
सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो॥ १६६ ॥
एदस्स अत्थे भण्णमाणे वट्टमाणं खेत्तं । अदीदेण चदुण्डं लोगाणमसंखेजदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो ।
उववादं णत्थि ॥ १६७ ॥
मनुष्यों में उत्पन्न होनेवाले देवोंका उत्पादक्षेत्र क्यों नहीं ग्रहण किया ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, प्रथम दण्डसे कम उसका छह बटे चौदह भागों में ही अन्तर्भाव हो जाता है, तथा मूलशरीरमें जीवप्रदेशोंके प्रवेश विना उस अवस्थामें उनके मरण का अभाव भी है । (?)
मनःपर्ययज्ञानी जीवोंने स्वस्थान और समुद्घात पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श किया हैं ? ॥ १६५॥
यह सूत्र सुगम है।
मनःपर्ययज्ञानी जीवोंने स्वस्थान और समुद्घात पदोंसे लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १६६ ॥
इस सूत्रका अर्थ कहते समय वर्तमान कालकी अपेक्षा क्षेत्रके समान निरूपण करना चाहिये । अतीत कालकी अपेक्षा उक्त जीवोंने चार लोकोंके असंख्यातवें भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है।
मनःपर्ययज्ञानियोंके उपपाद पद नहीं होता है॥ १६७ ॥
१ प्रतिषु ‘मणुस्सेसुप्पज्जमाणाणि' इति पाठः । २ प्रतिषु 'पदेस ' इति पाठः।
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