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२,१, ७.] बंधगसंतपरूवणाए बंधकारणाणि
[१३ पंचणाणावरणीय-चदुदंसणावरणीय-जसगित्ति-उच्चागोद-पंचंतराइयाणं सामण्णो कसाउदओ कारणं, कसायाभावे एदासिं बंधाणुवलंभा । सादावेदणीयबंधस्स जोगो चेव कारणं, मिच्छत्तासंजम-कसायाणमभावे वि जोगेणेक्केण चेवेदस्स बंधुवलंभादो, तदभावे तदणुवलंभादो। ण च एदाहिंतो वदिरित्ताओ अण्णाओ बंधपयडीओ अस्थि जेण तासिमण्णं पच्चयंतरं होज्ज ।
असंजमो वि पच्चओ पदिदो, सो काणं पयडीणं बंधस्स कारणमिदि ? ण, संजमघादिकम्मोदयस्सेव असंजमववदेसादो। असंजमो जदि कसाएसु चेव पददि तो पुध तदुवदेसो किमटुं कीरदे ? ण एस दोसो, क्वहारणयं पडुच्च तदुवदेसादो । एसा पज्जवट्ठियणयमस्सिऊण पच्चयपरूवणा कदा । दव्वट्टियणए पुण अवलंबिज्जमाणे बंधकारणमेगं चेव, चदुपच्चयसमूहादो बंधकज्जुप्पत्तीए । तम्हा एदे बंधपच्चया । एदेसिं
वरणीय, चार दर्शनावरणीय, यश-कीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय, इन सोलह प्रकृतियोंका सामान्य कषायोदय कारण है, क्योंकि, कषायों के अभावमें इन प्रकृतियोंका बन्ध नहीं पाया जाता । सातावेदनीय के बन्धका योग ही कारण है, क्योंकि, मिथ्यात्व, असंयम, और कषाय, इनका अभाव होनेपर भी एकमात्र योग के साथ ही इस प्रकृतिका बन्ध पाया जाता है, और योगके अभावमें इस प्रकृतिका बन्ध नहीं पाया जाता।
इनके अतिरिक्त और अन्य कोई बन्ध योग्य प्रकृतियां नहीं है जिससे कि उनका कोई अन्य कारण हो।
शंका- असंयम भी बन्धका कारण कहा गया है, सो वह किन प्रकृतियों के बन्धका कारण होता है?
समाधान- यह शंका ठीक नहीं, क्योंकि, संयमके घातक कषायरूप चारित्रमोहनीय कर्म के उदयका ही नाम असंयम है।
शंका-यदि असंयम कषायों में ही अन्तर्भूत होता है, तो फिर उसका पृथक् उपदेश किसलिये किया जाता है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं, क्योंकि व्यवहारनयकी अपेक्षासे उसका पृथक उपदेश किया गया है । बन्धकारणोंकी यह प्ररूपणा पर्यायार्थिकनयका आश्रय करके की गयी है। पर द्रव्यार्थिकनयका अवलम्बन करनेपर तो बन्धका कारण केवल एक ही है, क्योंकि, कारणचतुष्कके समूहसे ही बंधरूप कार्य उत्पन्न होता है।
इस कारण ये ही बंधके कारण हैं । इनके प्रतिपक्षी सम्यक्त्वोत्पत्ति, देशसंयम,
३ प्रतिषु 'पदिदं ', मप्रतौ 'पददि ' इति पाठः। ..
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