SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 446
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २, ७, १०७ ] फोसणाणुगमे कायजोगीणं फोसणं उववादो णत्थि ॥ १०५॥ तत्थ मण-वचिजोगाणमभावादो। कायजोगि-ओरालियमिस्सकायजोगी सत्थाण-समुग्घाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ १०६॥ सुगमं । . सव्वलोगो ॥ १०७॥ एदस्स अत्थो- सत्थाण वेयण-कसाय मारणंतिय-उववादेहि वट्टमाणादीदेसु सव्वलोगो फोसिदो । कुदो ? सव्वत्थ गमणागमणावट्ठाणं पडि विरोहाभावादो । विहारवदिसत्थाण-वेउवियपदेहि वट्टमाणं खेत्तं । अदीदेण अट्ठचोदसभागा देमूणा फोसिदा । णवरि वेउव्वियपदेण तिण्हं लोगाणं संखेज्जदिभागो। तेजाहारपदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागो फोसिदो। एत्थ वासदेण विणा कधमेसो पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंके उपपाद पद नहीं होता ॥१०५॥ क्योंकि, उपपाद पदमें मनोयोग व वचनयोगका अभाव है। काययोगी और औदारिकमिश्रकाययोगी जीव स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ १०६॥ यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीव उक्त पदोंसे सर्व लोक स्पर्श करते हैं ॥ १०७॥ इसका अर्थ- स्वस्थानस्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात,मारणान्तिक. समुद्घात और उपपाद पदोसे वर्तमान व अतीत कालोंमें उक्त जीवोंने सर्व लोकका स्पर्श किया है, क्योंकि, उन जीवोंके सर्वत्र गमनागमन और अवस्थानमें कोई विरोध नहीं है । विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंसे वर्तमानकालकी अपेक्षा स्पर्शनका निरूपण क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भागोंका स्पर्श किया है। विशेष इतना है कि वैक्रियिक पदकी अपेक्षा तीन लोकोंके संख्यातवें भागका स्पर्श किया है। तैजससमुद्घात और आहारकसमुद्घात पदोंसे चार लोकोंके असंख्यातवें भाग व मानुषक्षेत्रके संख्यातवें भागका स्पर्श किया है। शंका-प्रस्तुत सूत्रमें वा शब्दके विना यहां इस अर्थका व्याख्यान कैसे किया जाता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy