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________________ ४०८ ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ७, ८७. भागो, णर-तिरियलोगेहितो असंखेज्जगुणो फोसिदो । एसो वासदत्थो । णवरि वेउन्धियं वट्टमाणेण खेत्तभंगो । मारणतिय-उववादेहि सबलोगो फोसिदो। बादरवाउपज्जत्ता सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ?॥ ८७ ॥ सुगमं । लोगस्स संखेज्जदिभागो ॥ ८८॥ अदीद-वट्टमाणेहि पंचरज्जुबाहल्लरज्जुपदरमावूरिय अवट्ठाणादो। समुग्घाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ८९ ॥ सुगमं । लोगस्स संखेज्जदिभागो॥ ९० ॥ एदं वट्टमाणमस्सिदूण परूविदं । तेण वेयण-कसाय-मारणंतिय-उववादेहि तिण्हं ग्लोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है । विशेष इतना है कि वर्तमान कालकी अपेक्षा वैक्रियिकपदका निरूपण क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। मारणान्तिकसमुद्घात व उपपाद पदोंसे सर्व लोक स्पृष्ट है। बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पर्श करते हैं ? ॥ ८७॥ यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीव स्वस्थान पदोंसे लोकका संख्यातवां भाग स्पर्श करते हैं ॥ ८८॥ क्योंकि, अतीत और वर्तमान कालोंकी अपेक्षा उक्त जीवोंका पांच राजु बाहल्यरूप राजुप्रतरको पूर्णकर अवस्थान है । समुद्घात और उपपाद पदोंकी अपेक्षा उक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ ८९॥ यह सूत्र सुगम है। उक्त पदोंकी अपेक्षा लोकका संख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ ९०॥ यह वर्तमान कालका आश्रय कर कथन किया गया है । इसलिये वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदोंसे तीन लोकोंका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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