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३९.] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ७, ५३. समुग्धाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ५३॥ सुगमं । सव्वलोगो ॥ ५४॥
एत्थ वट्टमाणपरूवणाए खेत्तभंगो। वेदण-कसाएहि तीदे काले तिण्हं लोगाणं संखेजदिभागो, णर-तिरियलोरोहितो असंखेज्जगुणो फोसिदो। एवं वेउबिएण वि, पंचरज्जुआयदतिरियपदरम्मि सव्वत्थ विउव्यमाणवाउक्काइयाणं तीदे काले उवलंभादो। मारणंतिय-उववादेहि सव्वलोगो फोसिदो।
बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिंदिय-पज्जत्तापज्जत्ताणं सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ५५ ॥
सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ५६ ॥
समुद्घात व उपपादकी अपेक्षा उक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥५३॥ यह सूत्र सुगम है। उक्त जीवों द्वारा समुद्घात व उपपादकी अपेक्षा सर्व लोक स्पृष्ट है ॥ ५४॥
यहां वर्तमानप्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। वेदनासमुद्घात और कषायसमुद्धात पदोंसे अतीत कालमें तीन लोकोंका संख्यातवां भाग तथा मनुष्यलोक व तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । इसी प्रकार वैक्रियिकसमुद्धात पदकी अपेक्षा भी तीन लोकोंका संख्यातवां भाग और मनुष्यलोक व तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है, क्योंकि, अतीत कालकी अपेक्षा पांच राजु आयत तिर्यक्प्रतरमें सर्वत्र विक्रिया करनेवाले वायुकायिक जीव पाये जाते है । मारणान्तिकसमुद्धात व उपपाद पदोंसे सर्व लोक स्पृष्ट है।
द्वीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय पर्याप्त, द्वीन्द्रिय अपर्याप्त, त्रीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय पर्याप्त, त्रीन्द्रिय अपर्याप्त, चतुरिन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय पर्याप्त और चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त जीवों द्वारा स्वस्थान पदोंसे कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ ५५॥
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ ५६ ॥
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