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२, ७, ४६.] फोसणाणुगमे देवाणं फोसणं
[ ३९१ . लोगस्स असंखेज्जदिभागो छचोदसभागा वा देसूणा ॥४४॥
वट्टमाणं खेत्तभंगो । अदीदेण सत्थाणपरिणदेहि लोगस्स असंखेज्जदिभागो फोसिदो। विहारवदिसत्थाण-वेयण-कसाय-उन्विय-मारणंतियपरिणएहि छचोद्दसभागा फोसिदा । कुदो ? मेरुमूलादो अधो तेसिं गमणाभावेण वेउब्वियादीणमभावादो ।
उववादेहि केवडियं खेतं फोसिदं ? ॥४५॥ सुगमं ।
लोगस्स असंखेज्जदिभागो अद्धछ?-छचोदसभागा' वा देसूणा ॥ ४६ ॥
एत्थ वट्टमाणपरूवणाए खेत्तभंगो । अदीदेण आणद-पाणदकप्पे अद्धछट्ठचोद्दसभागा, आरणच्चुदकप्पे छचोद्दसभागा। सेसं सुगुमं ।
उपर्युक्त देवों द्वारा स्वस्थान व समुद्घात पदोंकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं ॥ ४४ ॥
यहां वर्तमानप्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है । अतीत कालकी अपेक्षा स्वस्थान पदसे परिणत उक्त देवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है । विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, वैक्रियिकसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात पदोंसे परिणत उक्त देवों द्वारा छह बटे चौदह भाग स्पृष्ट हैं, क्योंकि, मेरुमूलसे नीचे उनका गमन न होनेसे वहां वैक्रियिकसमुद्घातादिकोंका अभाव है।
उपपादकी अपेक्षा उपर्युक्त देवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ ४५ ॥ यह सूत्र सुगम है।
उपपादकी अपेक्षा उक्त देवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा चौदह भागोंमेंसे कुछ कम साढ़े पांच या छह भाग स्पृष्ट हैं ॥ ४६॥
यहां वर्तमानप्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। अतीत कालकी अपेक्षा आनतप्राणत कल्पमें चौदह भागोंमेंसे साढ़े पांच भाग और आरण-अच्युत कल्पमें छह भागप्रमाण स्पर्शन है। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
१ अप्रतौ — अट्ठछचोद्दसमागा', आप्रतौ — अट्ठचोदसभागा', काप्रती · अट्ठछचोदसमागा' इति पाठः।
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