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३७६ ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[ २,७, १४. रज्जुबाहल्लरज्जुपदरमेत्तफोसणुवलंभादो ।
पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्त-पचिंदियतिरिक्ख-- जोणिणि-पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्ता सत्थाणेण केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥१४॥
सुगममेदं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १५॥
एदस्स अत्थो वुच्चदे । तं जहा - एदेसिं वट्टमाणं खेत्तं । आदिल्लेहि तिहि वि तिरिक्खेहि सत्थाणेण तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरिक्खलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो। एदम्हि खेते आणिज्जमाणे भोगभूमिपडि भागदीवाणमंतरेसु द्विदअसंखेज्जेसु समुद्देसु सत्थाणपदंद्विदतिरिक्खा णत्थि त्ति एवं खेत्तमाणिय रज्जुपदरम्मि अवणिय सेसं संखेज्जसूचिअंगुलेहि गुणिदे तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागमेत्तं पंचिंदियतिरिक्खतिगस्स सत्थाणखेत्तं होदि । विहारवदिसत्थाण-वेयण-कसाय-वेउवियचउक्केण परिणदतिविहपंचिंदियतिरिक्खेहि तिण्हं लोगाणम
कायिक जीवोंका पांच राजु बाहल्यरूप राजुप्रतरप्रमाण स्पर्शनक्षेत्र पाया जाता है।
पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त, पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती और पंचेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ १४ ॥
यह सूत्र सुगम है। उपर्युक्त चार प्रकारके तिर्यचों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥१५॥
इस सूत्रका अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार है- इनकी वर्तमानकालिक स्पर्शनप्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है । अतीत कालकी अपेक्षा प्रथम तीन प्रकारके तिर्यंचों द्वारा स्वस्थान पदसे तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है। इस क्षेत्रके निकालते समय भोगभूमिप्रतिभागरूप द्वीपोंके अन्तरालमें स्थित असंख्यात समुद्रोंमें स्वस्थान पदमें स्थित तिर्यंच नहीं हैं, अतः इस क्षेत्रको लाकर व राजुप्रतरमेंसे कम कर शेषको संख्यात सूच्यंगुलोंसे गुणित करनेपर तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमात्र उक्त तीन पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंका स्वस्थानक्षेत्र होता है। विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात, इन चार पदोंसे परिणत तीन प्रकारके पंचेन्द्रिय तिर्यंचों द्वारा तीन लोकोंका
१ प्रतिषु 'पदिहिद-' इति पाठः ।
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