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________________ ३५६ ] छक्खंडागमे खुदाबंधों [ २, ६, ९६. एत्थ विवरण कस्समो । तं जहा - सत्थाण-विहारवदिसत्थाण- वेयण-कसायवेत्रियपदेहि चक्खुदंसणी तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । तेजाहारपदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागे । मारणंतियपदेण तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, णर- तिरियलोगे हिंतो असंखेज्जगुणे अच्छंति त्ति संबंधो कायव्वो । उववादं सिया अस्थि, सिया णत्थि । लद्धिं पडुच्च अस्थि, णिव्वत्तिं पडुच्च णत्थि । जदि ला पडुच्च अस्थि, केवडिखेत्ते ? ॥ ९६ ॥ सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ ९७ ॥ दस अत्थो बुच्चदे । तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, णर- तिरियलोगेहिंतो असंखेज्जगुणे । अचक्खुदंसणी असंजदभंगो ॥ ९८ ॥ इस सूत्र के अर्थका विवरण करते हैं । वह इस प्रकार हैस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंकी अपेक्षा चक्षुदर्शनी जीव तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग में तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग में और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । तैजससमुद्घात और आहारकसमुद्घात पदोंकी अपेक्षा चार लोकोंके असंख्यातवें भाग में और मानुषक्षेत्रके संख्यातवें भाग में रहते हैं । मारणान्तिकसमुद्घातकी अपेक्षा तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग में तथा मनुष्यलोक व तिर्यग्लोक से असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं, इस प्रकार सम्बन्ध करना चाहिये । T चक्षुदर्शनी जीवोंके उपपाद पद कथंचित् होता है, और कथंचित् नहीं भी होता है । लब्धिकी अपेक्षा उपपाद पद होता है, किन्तु निर्वृत्तिकी अपेक्षा नहीं होता । यदि लब्धिकी अपेक्षा उपपाद पद होता है तो उसकी अपेक्षा वे कितने क्षेत्र में रहते हैं ? || ९६ || यह सूत्र सुगम है | उपपादकी अपेक्षा चक्षुदर्शनी जीव लोकके असंख्यातवें भाग में रहते हैं ॥९७॥ इस सूत्र का अर्थ कहते हैं— उपपादकी अपेक्षा चभ्रुदर्शनी जीव तीन लोकोंके असंख्यातवें भागमें और मनुष्यलोक व तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । अचक्षुदर्शनियोंका क्षेत्र असंयत जीवोंके समान है ॥ ९८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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