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________________ छक्खंडागमे खुदाबंधो [ २, ६, ७८. कसायाणुवादेण कोधकसाई माणकसाई मायकसाई लोभकसाई वुंसयवेदभंगो ॥ ७८ ॥ कुदो ? सत्थान-वेयण- कसाय मारणंतिय उववादेहि सव्वलोगावट्ठाणेण; वेउब्वियाहारपदेहि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागत्तणेण, तिरियलोगस्स संखेज्जदिगत्तणेण, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणत्तणेण दोन्हं भेदाभावादो | णवरि वेउब्वियस्स तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागत्तणेण भेदो अस्थि, तमेत्थ ण पहाणं । णवरि एत्थ तेजाहारपदाणि अस्थि, वंस णत्थि अप्पसत्यत्तणेण । अकसाई अवगदवेदभंगो ॥ ७९ ॥ ३५० ] सुगममेदं । णाणाणुवादेण मदिअण्णाणी सुदअण्णाणी णवुंसयवेदभंगो ॥ ८० ॥ वरि वेव्वियस्स तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागत्तणेण भेदो अस्थि, तमेत्थ कषायमार्गणानुसार क्रोध कपायी, मानकपायी, मायाकपायी और लोभकपायी जीवोंका क्षेत्र नपुंसकवेदियोंके समान है ॥ ७८ ॥ क्योंकि, स्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायसमुद्वात, मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद पदोंकी अपेक्षा सर्व लोकमें अवस्थान से, तथा वैक्रियिक और आहारक समुद्धातकी अपेक्षा तीन लोकोके असंख्यातवें व तिर्यग्लोक के संख्यातवें भागत्व से एवं अढ़ाई द्वीपकी अपेक्षा संख्यातगुणत्वले उक्त चारों कपायवाले जीवों व नपुंसकवेदियोंके कोई भेद नहीं है । विशेष इतना है कि वैक्रियिकसमुद्धातकी अपेक्षा तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागत्वले भेद है, किन्तु वह यहां प्रधान नहीं है । दूसरी विशेषता यह है कि यहां तैजससमुद्धात और आहारकसमुद्धात पद हैं, किन्तु अप्रशस्त होनेसे नपुंसकवेदियों में ये नहीं होते हैं । अकषायी जीवोंका क्षेत्र अपगतवेदियोंके समान है ॥ ७१ ॥ यह सूत्र सुगम है | ज्ञानमार्गणानुसार मतिअज्ञानी और श्रुतअज्ञानियोंका क्षेत्र नपुंसकवेदियों के समान है ॥ ८० ॥ विशेष इतना है कि वैक्रियिकसमुद्घातकी अपेक्षा तिर्यग्लोक संख्यातवें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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