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२, ६, ५५. ]
खेत्तागमे जोगमगणा
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मुग्धादगदा दे दस त्रि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे; तेजाहारसमुग्धादगदा चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जस्स संखेज्जदिभागे; मारणंतियसमुग्धादगदा तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, णर- तिरियलोगेहिंतो असंखेज्जगुणे अच्छंति । उववादं णत्थि, मणजोगवचिजोगाणं विवक्खादो ।
कायजोग - ओरालियमिस्सका यजोगी सत्थाणेण समुग्धादेण उववादे केवडिखेत्ते ? ॥ ५४ ॥ सुगममेदं । सव्वलो ॥ ५५ ॥
दस्स सुत्तस्स अत्थो बुच्चदे । तं जहा - सत्थाण- वेयण-कसाय- मारणंतियउवादेहि सव्वलोगे। कुदो ? आणंतियादो । विहारवदिसत्थाण- वे उच्चियपदेहि कायजोगिणो तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे ।
वत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घातको प्राप्त ये दश ही जीव तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग में, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग में, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । तैजससमुद्घात व आहारकसमुद्घातको प्राप्त उक्त जीव चार लोकोंके असंख्यातवें भाग में और अढ़ाई द्वीपके संख्यातवें भाग में रहते हैं । मारणान्तिकसमुद्घातको प्राप्त उक्त जीव तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग में तथा मनुष्य व तिर्यग्लोककी अपेक्षा असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । उपपाद पद नहीं है, क्योंकि, मनोयोग व वचनयोगकी यहां विवक्षा है ।
काययोगी और औदारिकमिश्रकाययोगी जीव स्वस्थान, समुद्घात व उपपाद पदसे कितने क्षेत्र में रहते हैं ? ॥ ५४ ॥
यह सूत्र सुगम है |
काययोगी और औदारिक मिश्रकाययोगी जीव उक्त पदोंसे सर्व लोकमें रहते हैं ।। ५५ ।।
इस सूत्र का अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार है— स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदोंसे काययोगी व औदारिकमिश्रका योगी सर्व लोकमें रहते हैं, क्योंकि, वे अनन्त हैं । विद्वारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंसे काययोगी जीव तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग में, तिर्यग्लोक के संख्यातवें भाग में, और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं, क्योंकि, जगप्रतर के
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