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________________ २, ६, ५५. ] खेत्तागमे जोगमगणा [ ३४१ मुग्धादगदा दे दस त्रि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे; तेजाहारसमुग्धादगदा चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जस्स संखेज्जदिभागे; मारणंतियसमुग्धादगदा तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, णर- तिरियलोगेहिंतो असंखेज्जगुणे अच्छंति । उववादं णत्थि, मणजोगवचिजोगाणं विवक्खादो । कायजोग - ओरालियमिस्सका यजोगी सत्थाणेण समुग्धादेण उववादे केवडिखेत्ते ? ॥ ५४ ॥ सुगममेदं । सव्वलो ॥ ५५ ॥ दस्स सुत्तस्स अत्थो बुच्चदे । तं जहा - सत्थाण- वेयण-कसाय- मारणंतियउवादेहि सव्वलोगे। कुदो ? आणंतियादो । विहारवदिसत्थाण- वे उच्चियपदेहि कायजोगिणो तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । वत्स्वस्थान, वेदनासमुद्घात कषायसमुद्घात और वैक्रियिकसमुद्घातको प्राप्त ये दश ही जीव तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग में, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग में, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । तैजससमुद्घात व आहारकसमुद्घातको प्राप्त उक्त जीव चार लोकोंके असंख्यातवें भाग में और अढ़ाई द्वीपके संख्यातवें भाग में रहते हैं । मारणान्तिकसमुद्घातको प्राप्त उक्त जीव तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग में तथा मनुष्य व तिर्यग्लोककी अपेक्षा असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । उपपाद पद नहीं है, क्योंकि, मनोयोग व वचनयोगकी यहां विवक्षा है । काययोगी और औदारिकमिश्रकाययोगी जीव स्वस्थान, समुद्घात व उपपाद पदसे कितने क्षेत्र में रहते हैं ? ॥ ५४ ॥ यह सूत्र सुगम है | काययोगी और औदारिक मिश्रकाययोगी जीव उक्त पदोंसे सर्व लोकमें रहते हैं ।। ५५ ।। इस सूत्र का अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार है— स्वस्थान, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणान्तिकसमुद्घात और उपपाद पदोंसे काययोगी व औदारिकमिश्रका योगी सर्व लोकमें रहते हैं, क्योंकि, वे अनन्त हैं । विद्वारवत्स्वस्थान और वैक्रियिकसमुद्घात पदोंसे काययोगी जीव तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग में, तिर्यग्लोक के संख्यातवें भाग में, और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं, क्योंकि, जगप्रतर के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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