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२, ६, १६.] खेत्तायुगमै देवखेत्तारूवणं
[ ३१५ बासाउएसु तत्थ ट्ठियअसंखेज्जवासाउएहितो असंखेज्जगुणेसु आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तुवक्कमणकालुवलंभादो । तेण वेंतररासिं ठविय मारणंतियउवक्कमणकालेणोवट्टिदसगुवक्कमणकालसंखेज्जरूवेहि भागे हिदे मुक्कमारणंतियजीवा होंति । तेसिमसंखेज्जदिभागो ईसिफ्भारादि उवरिमपुढवीसु उप्पज्जदि त्ति पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो भागहारो दादयो । तिरिक्खेसु रज्जुमे गंतूणुप्पज्जमाणजीवाणमागमणटुं च पुणो पदरंगुलस्स संखेज्जदिभागेगम्भस्थसंखेज्जरज्जूहि गुणिदे मारगतियखेतं होदि ।
___ उववादगदा तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, पर-तिरियलोगेहिंतो असंखेज्जगुणे अच्छति । एदस्स सेत्तस्स विण्णासो मारणंतियभंगो। णवरि तिरिक्खरासिं तिरिक्खाणमुवक्कमणकालेग आवलियाए असंखेज्जदिभागेगोवट्टिय पुणो देवेसुप्पज्जमाणरासिमिच्छिय तपाओग्गअसंखेज्जरवेहि ओवट्टिय रज्जुमेत्तं गंतूगुप्पज्जमाणजीवाणं पमाणागमण8 पलिदोत्रमस्प असंखेज्जदिभागो भागहारो दादयो । पुणो विदियदंडेण रन्जुसंखेजदिभागमेतायदजीवाणं पउरं संभवाभावादो पुणो अण्णेगो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो
स्थित असंख्यातवर्षायुष्कों की अपेक्षा असंख्यातमुणे महांक संख्यातवर्षाप्कोम आवलीके असंख्यातवें भागमात्र उपक्रमणकालकी उपलब्धि है । इसलिये व्यन्तरराशिको स्थापित कर मारणान्तिक उपक्रमणकालसे अपवर्तित अपने उपक्रमणकालरूप संख्यात रूपोंका भाग देनेपर मक्तमारणान्तिक जीवोंका प्रमाण होता है। उनका असंख्यातवां भाग ईपत्ताग्भारादि उपरिम पृथिवियों में उत्पन्न होता है, इसलिये पल्योपमका असंख्यातवां भाग भागहार देना चाहिये । तिर्यचोंमें राजमात्र जाकर उत्पन्न होनेवाले जीवोंके आगमनार्थ पुनः प्रतरांगुलके संख्यातवें भागसे गुणित संख्यात राजुओंसे गुणित करनेपर मारणा न्तिक क्षेत्र होता है।
उपपादको प्राप्त देव तीन लोकोंके असंख्यात भागमें तथा मनुष्यलोक व विरलोकसे असंख्यातगणे क्षेत्र में रहते हैं। इस क्षेत्रका विन्यास मारणान्तिक अत्रके समान है। विशेष इतना है कि तिर्यंचराशिको तिर्यंचों के उपक्रमणकाल रूप आवलीके असंख्यातवें भागसे अपवर्तित कर पुनः देवों में उत्पन्न होनेवाली राशिकी इच्छा कर तत्प्रायोग्य असंख्यात रूपोंसे अपवर्तित कर राजुप्रमाण जाकर उत्पन्न होनेवाले जीवोंके प्रमाणको लानेके लिये पल्योपमका असंख्यातवां भाग भागहार देना चाहिये । पुनः द्वितीय दण्डसे राजुके संख्यातवें भागमात्र आयामको प्राप्त जीवोंकी प्रचुर संभावना न होनेसे पुनः एक और अन्य पल्योपमका असंख्यातवां भाग भागहार देना चाहिये । पुनः
१ कप्रती · ईसयपभारादि ' इति पाठः ।
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