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२, ६, ७.] खेत्ताणुगमे तिरिक्खखेत्तपरूवणं
[ ३०५ लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तादो असंखेज्जगुणं । कुदो ? तिरिक्खेसु विउव्वमाणरासी पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तघणंगुलेहि गुणिदसेडीमेत्तो त्ति गुरूवदेसादो । तम्हा एदस्स पुधपरूवणा कादया ? ण, एदस्स समुग्घादे अंतभावादो । सेसं सुगमं ।
पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्ता पंचिंदियतिरिक्खजोगिणी पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्ता सत्थाणेण समुग्धादेण उववादेण केवडिखेत्ते ? ॥ ६॥
एदमासंकासुत्तं सुगमं । लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ ७ ॥
एदं देसामासियं सुत्तं, देसपदुप्पायणमुहेण सूचिदाणेयत्थादो । एत्थ ताव पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपञ्जत्त-पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीणं वुच्चदे। तं जहा- एदे
असंख्यातगुणा है, क्योंकि, तियचोंमें विक्रिया करनेवाली राशि पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र घनांगुलोंसे गुणित जगश्रेणीप्रमाण है, ऐसा गुरुका उपदेश है।
शंका- चूंकि तिर्यंचोंके वैक्रियिकसमुद्घातक्षेत्रमें विशेषता है इस कारण इसकी पृथक् प्ररूपणा करना चाहिये?
समाधान नहीं, क्योंकि, इसका समुद्घातमें अन्तर्भाव हो जाता है। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
पंचेन्द्रिय तियंच, पंचेन्द्रिय तिर्यच पर्याप्त, पंचेन्द्रिय तिथंच योनिमती और पंचेन्द्रिय तियंच अपर्याप्त जीव स्वस्थान, समुद्घात और उपपादसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ॥ ६ ॥
यह आशंकासूत्र सुगम है।
उपर्युक्त चार प्रकारके तिथंच उक्त पदोंसे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ७ ॥
यह देशामर्शक सूत्र है, क्योंकि, एक देश कथनकी मुख्यतासे अनेक अर्थोंको सूचित करता है। यहां पहले पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त और पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमतियोंका क्षेत्र कहा जाता है । वह इस प्रकार है- ये तीनों ही स्वस्थानस्वस्थान,
१ प्रतिषु — सूचिदाणेयादो' इति पाठः ।
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