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२, ६, ३. ] खेत्ताणुगमे णेरइयखेत्तपरूवणं
[३०३ एत्थ वि पंचलोगोवट्टणं पुव्वं व कायव्यं ।
__उववादखेसे आणिज्जमाणे पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण विदियपुढविदव्वे भागे हिदे तिरिक्खेहितो विदियपुढवीए उप्पज्जमाणरासी होदि । एदस्स असंखेज्जदिभागो चेव उजुगदीए उप्पज्जदि, कंडुज्जुएण मग्गेण सगउप्पत्तिट्ठाणमागच्छमाणजीवाणं बहुयाणमणुवलंभादो । तेणेदस्स असंखेज्जा भागा विग्गहगदीए उप्पज्जमाणतिरिक्खरासी होदि । पुणो एदं दव्वं तिरिक्खोगाहणमुहवित्थारेण तप्पाओग्गअसंखेज्जजोयणगुणेण गुणिदे उववादखेत्तं होदि । ओवट्टणा पुव्वं व कायव्वा । सेसं जाणिय वत्तव्यं ।
एवं सत्तसु पुढवीसु णेरइया ॥३॥
कुदो ? सत्थाण-समुग्धाद-उववादेहि लोगस्स असंखेज्जदिभागत्तं पडि विसेसाभावादो । एसो दव्यट्ठियणयं पडुच्च णिद्देसो । पज्जवट्ठियणयं पडुच्च परूविज्जमाणे सत्तण्हं पुढवीणं दव्यविसेसो ओगाहणविसेसो मारणंतिय-उववादखेत्ताणमायामविसेसो च अत्थि । णवरि सो जाणिय वत्तव्यो।
पूर्वके समान करना चाहिये।
उपपादक्षेत्रके निकालनेमें पल्यापमक असंख्यातवें भागसे द्वितीय पृथिवीके द्रव्यको भाजित करनेपर तिर्यंचोंसे द्वितीय पृथिवीमें उत्पन्न होनेवाली राशि होती है। इसका असंख्यातवां भाग ही ऋजुगतिसे उत्पन्न होता है, क्योंकि, बाणके समान ऋजु मार्गसे अपने उत्पत्तिस्थानको आनेवाले जीव बहुत नहीं पाये जाते । इसीलिये इसके असंख्यात बहुभागप्रमाण विग्रहगातसे उत्पन्न होनेवाली तिर्यचराशि है। पुनः इस द्रव्यको तत्प्रायोग्य असंख्यात योजनसे गुणित तिर्यचौकी अवगाहनारूप मुखविस्तारसे गुणित करनेपर उपपादक्षेत्र होता है । अपवर्तन पूर्वके समान करना चाहिये। शेष नानकर कहना चाहिये।
___ इसी प्रकार सात पृथिवियोंमें नारकी जीव उपर्युक्त पदोंसे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ३ ॥
क्योंकि, स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद पदोंसे लोकके असंख्यातवें भागत्वके प्रति कोई विशेषता नहीं है। यह निर्देश द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षासे है । पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा प्ररूपण करनेपर सात पृथिवियोंके द्रव्य की विशेषता, अवगाहनाकी विशेषता और मारणान्तिक एवं उपपाद क्षेत्रोंके आयामकी विशेषता भी है । इसलिये उसे जानकर कहना चाहिये ।
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