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२८६) छक्खंडागमै खुद्दाबंधो
[२, ५, ११९. जया णqसयवेदस्स पमाणपरूवणा कदा तधा कादव्या, विसेसाभावादो । विभंगणाणी दब्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ११९ ॥ सुगमं । देवेहि सादिरेयं ॥ १२० ॥
बेछप्पण्णंगुलसदवग्गेण सादिरेगेण जगपदरम्मि भागे हिदे देवविभंगणाणियमाणं होदि । पुणो एत्थ तिगदिविभंगणाणिपमाणे पक्खित्ते सव्यविभंगणाणिपमाणं होदि त्ति देवेहि सादिरेयमिदि पमाणपरूवणं कदं । सेमं सुगमं ।
आभिणिबोहिय-सुद-ओधिणाणी दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥१२१॥
सुगमं । पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १२२ ॥ एदेण संखेज्जाणताणं पडिसेहो कदो, परित्त-जुत्तासंखेज्जाणमुक्कस्सअसंखेज्जा
जिस प्रकार नपुंसकवेदियोंकी प्रमाणप्ररूपणा की है उसी प्रकार मतिअज्ञानी और श्रुतअज्ञानियों के प्रमाणकी प्ररूपणा करना चाहिये, क्योंकि, दोनोंमें कोई विशेषता नहीं है।
विभंगज्ञानी द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ ११९ ॥ यह सूत्र सुगम है। विभंगज्ञानी द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा देवोंसे कुछ अधिक हैं ॥ १२० ।।
साधिक दौसौ छप्पन अंगुलोंके वर्गका जगप्रतरमें भाग देनेपर देव विभंगशानियोंका प्रमाण होता है । पुनः इसमें तीन गतियों के विभंगज्ञानियों का प्रमाण जोड़नेपर समस्त विभंगज्ञानियोंका प्रमाण होता है, इसी कारण 'विभंगश कुछ अधिक है ' इस प्रकार उनकी प्रमाणप्ररूपणा की गयी है। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
आभिनियोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी द्रव्यप्रमाणमे कितने हैं ? ॥ १२१ ॥
यह सूत्र सुगम है।
उक्त तीन ज्ञानवाले जीव द्रव्यप्रमाणसे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं ॥ १२२ ॥
इस सूत्रसे संख्यात च अनन्तका प्रतिषेध किया गया है, साथ ही परीतासं
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