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________________ २, ५, ४४. ] दवमाणागमे जोदिसियदेवाणं प्रमाणं [ २६३ एदेण संखेज्जाणंताणं' पडिसेहो कदो । असंखेज्जं पि परित्त जुत्त-असंखेज्जासंखेजण तिविहं । तत्थ अणप्पिदपडिहद्वमुत्तरसुत्तं भणदिअसंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति काले ॥ ४२ ॥ एदेण परित्त जुत्तासंखे जाणं जहण्णअसंखेज्जासंखेजस्स य पडिसेहो कदो, तत्थ असंखेज्जासंखेज्जाणमोसपिणि उस्सप्पिणीणमभावादो । इदरेसु दोसु अणप्पिदपडिसेहडमुत्तरमुत्तं भणदि खेत्ते पदरस्स संखेज्जजोयणसदवग्गपडिभाएण ॥ ४३ ॥ तप्पा ओग्गसंखेज्जजो यणसदं वग्गिय तेण जगपदरे ओवट्टिदे वाणवैतरदेवाणं पमाणं होदि । सेसं सुगमं । जोदिसिया देवा देवग दिभंगो ॥ ४४ ॥ इसके द्वारा संख्यात व अनन्तका प्रतिषेध किया गया है । असंख्यात भी परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और असंख्यातासं ख्यातके भेद से तीन प्रकार है । उनमें अविवक्षित असंख्यातके प्रतिषेधार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं - कालकी अपेक्षा वानव्यन्तर देव असंख्याता संख्यात अवसर्पिणी- उत्सर्पिणियों से अपहृत होते हैं ।। ४२ ॥ इस सूत्र द्वारा परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और जघन्य असंख्याता संख्यातका भी प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, उनमें असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी - उत्सर्पिणियोंका अभाव है । अब इतर दो असंख्याता संख्यातों में अविवक्षितके प्रतिषेधार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं क्षेत्रकी अपेक्षा वानव्यन्तर देवोंका प्रमाण जगप्रतरके संख्यात सौ योजनोंके वर्गरूप प्रतिभाग से प्राप्त होता है ।। ४३ ।। तत्प्रायोग्य संख्यात सौ योजनोंका वर्ग करके उससे जगप्रतरके अपवर्तित करनेपर वानव्यन्तर देवोंका प्रमाण होता है । शेष सूत्रार्थ सुगम है । ज्योतिषी देवोंका प्रमाण देवगतिके समान है ॥ ४४ ॥ Jain Education International १ प्रतिषु ' असंखेज्जाणताणं ' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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