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________________ २६२ । छक्खंडागमे खुदाबंधी [२, ५, ३८. एदेण सुत्तेण उक्कस्सअसंखेज्जासंखेज्जस्स पडिसेहो कदो, लोगाणमणिदेसादो' । असंखेज्जाओ सेडीओ वि अणेयभेयभिण्णाओ, तण्णिण्णयउप्पायणट्टमुत्तरसुत्तं भणदि पदरस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ३८ ॥ एदेण जगपदरस्स दुभाग-तिभागादीणं पडिसेहो कदो । जगपदरस्त असंखेज्जदिभागो वि अणेय भेयभिण्णाओ त्ति तत्थ णिच्छयजणणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि तासिं सेडीणं विक्खंभसूची अंगुलं अंगुलवग्गमूलगुणिदेण ॥ ३९॥ सूचिअंगुलं तस्सेब पढमवग्गमूलेण गुणिदं सेडीण विखंभसूची होदि । सेसं सुगमं । वाण-तरदेवा दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ४० ॥ सुगम । असंखेज्जा ॥४१॥ इस सूत्रके द्वारा उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, यहां लोकोका निर्देश नहीं है। असंख्यात जगश्रेणियां भी अनेक भेदोंसे भिन्न हैं, अतः उनके निर्णयोत्पादनार्थ उत्तर मूत्र कहते हैं उपर्युक्त असंख्यात जगश्रेणियां जगप्रतरके असंख्यातवें भागप्रमाण ग्रहण करना चाहिये ॥ ३८॥ इससे जगप्रतरके द्वितीय तृतीय भागादिकोका प्रतिषेध किया गया है। जग. प्रतरका असंख्यातवां भाग भी अनेक भेदोंसे भिन्न है, अतः उनमें निश्चयजननार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं उन असंख्यात जगश्रेणियोंकी विष्कम्भसूची सूच्यंगुलको मूच्यंगुलके ही वर्गमूलसे गुणित करनेपर जो लब्ध हो उतनी है ॥ ३९ ॥ सूच्यंगुलको उसके ही प्रथम वर्गमूलसे गुणित करनेपर उन असंख्यात जगश्रेणियोंकी विष्कम्भसूची होती है। शेष सूत्रार्थ सुगम है। वानव्यन्तर देव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ ४०॥ यह सूत्र सुगम है। वानव्यन्तर देव द्रव्यप्रमाणसे असंख्यात हैं ॥ ४१ ॥ १ प्रतिषु 'दोगामणिदेसादो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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