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________________ २, ५, २५.] दव्यपमाणाणुगमे मणुस-मणुसअपज्जत्ताणं पमाणं [२५५ एदेण वयणेण संखेज्जाणताणं पडिसहो कदो, पडिवक्खणिराकरणेण सवक्ख'पदुप्पायणादो । तं पि असंखेज्ज तिवियप्पमिदि कट्ट इदमिदि णिण्णओ णत्थि । इदं चैव होदि ति णिण्णयउप्पायणमुत्तरसुत्तं भणदि___ असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ २४ ॥ एदेण परित्त-जुत्तासंखेज्जाणं पडिसेहो कदो, पडिवक्खणिसेहं काऊण असंखेज्जासंखेज्जवयणस्स सवक्खपदुप्पायणादो। तं पि जहण्णुक्कस्स-तव्वदिरित्तभेएण तिविहमिदि कट्ट ण तत्थ णिच्छओ अस्थि । तत्थ णिच्छउप्पायणट्टमुत्तरसुत्तं भणदि खेत्तेण सेडीए असंखेज्जदिभागो ॥२५॥ एदेण उक्कस्सअसंखेज्जासंखेज्जस्स पडिसेहो कदो, सेडीए असंखेज्जदिभागस्स इस वचनसे संख्यात व असंख्यातका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, प्रतिपक्षका निराकरण करनेसे अपने पक्षका प्रतिपादन होता है । वह असंख्यात भी तीन प्रकार है, ऐसा करके उनमें से 'यह असंख्यात है' इस प्रकार निर्णय नहीं हैं, अतः 'यही असंख्यात है' इसका निर्णय उत्पन्न करने के लिये उत्तर सूत्र कहते हैं मनुष्य और मनुष्य अपर्याप्तक कालकी अपेक्षा असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणीउत्सर्पिणियोंसे अपहृत होते हैं ॥ २४ ॥ इस सूत्रके द्वारा परीतासंख्यात और युक्तासंख्यातका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, प्रतिपक्षका निषेध करके असंख्यातासंख्यात वचनको स्वपक्ष निरूपण करना है । वह असंख्यातासंख्यात भी जघन्य, उत्कृष्ट और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकार है, ऐसा करके उनमें विशेष निश्चय नहीं है। अतः उक्त तीन भेदोंमेंसे विशेषके निश्चयोत्पादनार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं क्षेत्रकी अपेक्षा मनुष्य व मनुष्य अपर्याप्त जगश्रेणीके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं ॥ २५ ॥ इसके द्वारा उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातका प्रतिषेध किया गया है, क्योंकि, १ प्रतिषु · सव्वक्ख ' इति पाठः। २ अप्रतौ वि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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