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णाणाजीवेहि भंगविचयाणगमे संजममग्गणा
[ २४१ सुगमं ।
णाणाणुवादेण मदिअण्णाणी सुदअण्णाणी विभंगणाणी आभिणिबोहिय-सुद-ओहि-मणपज्जवणाणी केवलणाणी णियमा अस्थि ॥१४॥
णाणिणो इदि बहुवयणणिदेसो किण्ण कओ ? ण, इकारांतपुरिस-णqसयलिंगसद्देहितो उप्पण्णपढमाबहुवयणस्स विहासाए लोवुवलंभादो । जहा- पचए अग्गी जलंति, मत्ता हत्थी एंति त्ति । सेसं सुगमं ।
संजमाणुवादेण सामाइय-छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदा परिहारसुद्धिसंजदा जहाक्खादविहारसुद्धिसंजदा संजदासजदा असंजदा णियमा अत्थि ॥ १५॥
सुगमं ।
यह सूत्र सुगम है।
ज्ञानमार्गणानुसार मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी, विभंगज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी और केवलज्ञानी नियमसे हैं ॥ १४ ॥
शंका-सूत्रमें ‘णाणिणो ' ऐसा बहुवचननिर्देश क्यों नहीं किया ?
समाधान-नहीं, क्योंकि इकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग शब्दोंसे उत्पन्न प्रथमाबहुवचनका विकल्पसे लोप पाया जाता है । जैसे- पव्वए अग्गी जलंति (पर्वतपर अग्नि जलती हैं) , मत्ता हत्थी एंति (मत्त हाथी आते हैं)। यहां 'अग्गी' और 'हत्थी' पदोंमें प्रथमाबहुवचनका लोप होगया है। शेष सूत्र सुगम है।
संयममार्गणानुसार सामायिक छेदोपस्थापनशुद्धिसंयत, परिहारशुद्धिसंयत, यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत, संयतासंयत और असंयत जीव नियमसे हैं ।। १५ ॥
यह सूत्र सुगम है।
१ अप्रतौ — विहासालोगोवलंभादो'; आ-काप्रत्योः । विहासालोगोवुवलंभादो'; मप्रतौ — विहासाए लोधुलंभादो' इति पाठः।
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