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________________ २४०] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, ४, १०. जोगाणुवादेण पंचमणजोगी पंचवचिजोगी कायजोगी ओरालियकायजोगी ओरालियमिस्सकायजोगी वेउब्वियकायजोगी कम्मइयकायजोगी णियमा अस्थि ॥ १० ॥ सुगमं । वेउव्वियमिस्सकायजोगी आहारकायजोगी आहारमिस्सकायजोगी सिया अत्थि सिया णत्थि ॥ ११ ॥ __कुदो ? सांतरसहावादो । ण च सहावो परपज्जणुजोगारुहो, अइप्पसंगादो । वेदाणुवादेण इत्थिवेदा पुरिसवेदा णबुंसयवेदा अवगदवेदा णियमा अत्थि ॥ १२ ॥ गंगापवाहस्सेव विच्छेदाभावादो। कसायाणुवादेण कोधकसाई माणकसाई मायकसाई लोभकसाई अकसाई णियमा अत्थि ॥ १३॥ योगमार्गणानुसार पांच मनोयोगी, पांच वचनयोगी, काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, वैक्रियिककाययोगी और कार्मणकाययोगी नियमसे हैं ॥ १०॥ यह सूत्र सुगम है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी कदाचित् हैं भी, कदाचित् नहीं भी हैं ॥ ११ ॥ क्योंकि, इनका सान्तर स्वभाव है । और स्वभाव दूसरों के प्रश्नके योग्य नहीं होता, क्योंकि, ऐसा होनेसे अतिप्रसंग दोष आता है। वेदमार्गणानुसार स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी और अपगतवेदी जीव नियमसे हैं ॥ १२॥ क्योंकि, गंगाप्रवाहके समान इनका विच्छेद नहीं होता। कषायमार्गणानुसार क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी, लोभकषायी और अकषायी जीव नियमसे हैं ॥ १३ ॥ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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