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________________ २३५ छवखंडागमे खुद्दाबंधो [२, ३, १४०. पडिवज्जिय उवसमसेडिमारुहिय तत्तो ओदिण्णो वि ण सासणं पडिवज्जदि त्ति अहिप्पाओ एदस्स सुत्तस्स । तेणंतोमुहुत्तमेत्तं जहण्णंतरं णोवलब्भदे । उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टू देसूणं ॥ १४०॥ ...... कुदो ? अणादियमिच्छाइट्ठिस्स अद्धपोग्गलपरियादिसमए गहिदसम्मत्तस्स सासणं गंतूण उवड्डपोग्गलपरियट्ट भमिय अंतोमुहुत्तावसेसे संसारे पढमसम्मत्तं घेत्तण एगसमयं सासणो होदूण अंतरं समाणिय पुणो मिच्छत्तं सम्मत्तं च कमेण गंतूण अबंधभावं गदस्स उबड्डपोग्गलपरियटुंतरुवलंभादो। मिच्छाइट्टी मदिअण्णाणिभंगो ॥ १४१ ॥ जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण बेछावढिमागरोवमाणि देसूणाणि, इच्चेदेहि जहण्णुक्कस्संतरेहि दोण्हमभेदादो । १सण्णियाणुवादेण सण्णीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥१४२॥ सुगमं । mmmmmm.......... भवमें सासादनको प्राप्त कर उपशमश्रेणीपर आरूढ़ हो उससे उतरा हुआ भी जीव सासादनको प्राप्त नहीं होता, यह इस सूत्रका अभिप्राय है। इस कारण अन्तर्मुहूर्तमात्र जघन्य अन्तर प्राप्त नहीं होता। सासादनसम्यग्दृष्टियोंका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है ॥१४०॥ . क्योंकि, अनादिमिथ्यादृष्टिके अर्धपुद्गलपरिवर्तनके प्रथम समयमें सम्यक्त्वको प्रहणकर सासादनको प्राप्त हो कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण भ्रमणकर संसारके अन्तर्मुहूर्त शेष रहनेपर प्रथमसम्यक्त्वको ग्रहणकर एक समय सासादन रहकर अन्तरको समाप्त कर पुनः क्रमसे मिथ्यात्व और सम्यक्त्वको प्राप्त हो अबन्धकभावको प्राप्त होनेपर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण अन्तर प्राप्त होता है । ...मिथ्यादृष्टिका अन्तर मति-अज्ञानीके समान है ॥ १४१ ॥ क्योंकि, जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे कुछ कम दो छयासठ सागरोपम इन जघन्य व उत्कृष्ट अन्तरोंसे दोनोंके कोई भेद नहीं है। - संज्ञिमार्गणाके अनुसार संज्ञी जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥१४२॥ । यह सूत्र सुगम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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