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२०८] छक्खंडागमे खुदाबंधो
[२, ३, ६८. ____कुदो ? ओरालियकायजोगादो चत्तारिमण-चत्तारिवचिजोगेसु परिणमिय कालं करिय तेत्तीसाउट्ठिदिएसु देवेसुववज्जिय सगढिदिमच्छिय दो विग्गहे कादूग मणुस्सेसुप्पज्जिय ओरालियमिस्सकायजोगेण दीहकालमच्छिय पुणो ओरालियकायजोगं गदस्त णवहि अंतोमुहुत्तेहि वेहि समएहि सादिरेयतेत्तीससागरोवममेत्ततरुवलंभादो । एवमोरालियमिस्सकायजोगस्स वि अंतरं वत्तव्यं । णवरि अंतोमुहुत्तूणपुव्यकोडीए सादिरेयाणि तेतीससागरोवमाणि अंतरं होदि, णेरइएहिंतो पुचकोडाउअमणुस्सेप्पज्जिय ओरालियमिस्सकायजोगस्स आदि करिय सव्वलहुं पज्जत्तीओ समाणिय ओरालियकायजोगेणतरिय पुचकोडिं देसूणं गमिय तेत्तीसाउट्ठिदिदेवेसुप्पज्जिय पुणो विग्गहे कादूण ओरालियमिस्सकायजोगं गदस्स तदुवलंभादो।
वेउन्वियकायजोगीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ६८ ॥ सुगमं ।
क्योंकि, औदारिककाययोगसे चार मनयोगों व चार वचनयोगोंमें परिणमित हो मरण कर तेतीस सागरोपमप्रमाण आयुस्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न होकर, वहां अपनी स्थितिप्रमाण रहकर, पुनः दो विग्रह करके मनुष्योंमें उत्पन्न हो औदारिकमिश्रकाययोग सहित दीर्घ काल रहकर, पुनः औदारिककाययोगमें आये हुए जीवके नौ अन्तमुहूर्तों घ दो समयोंसे अधिक तेतीस सागरोपमप्रमाण औदारिककाययोगका अन्तर प्राप्त हो जाता है।
इसी प्रकार औदारिकमिश्रकाययोगका भी अन्तर कहना चाहिये । केवल विशेषता यह है कि औदारिकमिश्रकाययोगका अन्तर अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटिसे अधिक तेतीस सागरोपमप्रमाण होता है, क्योंकि, नारकी जीवोंमें से निकलकर, पूर्वकोटि आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न हो, औदारिकमिश्रकाययोगका प्रारंभ कर, कमसे कम कालमें पयोप्तियाको पूर्ण करके, औदारिककाययोगके द्वारा आदारिकमिश्रकाय योगका अन्तर कर, कुछ कम पूर्वकोटि काल व्यतीत करके तेतीस सागरोपमकी आयुवाले देवोंमें उत्पन्न हो, पुनः विग्रह करके औदारिकमिश्रकाययोगमें जानेवाले जीवके सूत्रोक्त कालप्रमाण अन्तर पाया जाता है।
वैक्रियिककाययोगी जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ६८ ॥ यह सूत्र सुगम है।
१ प्रतिषु 'जेहि ' इति पाठः ।
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