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२, ३, ६७.] एगजीवेण अंतराणुगमे ओरालिय-मिस्सकायजोगीणमंतरं [२०७
ओरालियकायजोगी-ओरालियमिस्सकायजोगीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥६५॥
सुगमं । जहण्णेण एगसमओ ॥६६॥
कुदो ? ओरालियकायजोगादो मणजोगं वचिजोगं वा गंतूण एगसमयमच्छिय विदियसमए वाघादवसेण ओरालियकायजोगं गदस्स एगसमयअंतरुवलंभादो। ओरालियमिस्सकायजोगिस्स अपज्जत्तभावेण मण-बचिजोगविरहियस्स कधमंतरस्स एगसमओ ? ण, ओरालियमिस्सकायजोगादो एगविग्गहं करिय कम्मइयजोगम्मि एगसमयमच्छिय विदियसमए ओरालियमिस्सं गदस्स एगसमयअंतरुवलंभादो ।
उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥ ६७॥
औदारिककाययोगी और औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ६५ ॥
यह सूत्र सुगम है।
औदारिककाययोगी और औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय होता है ॥६६॥
क्योंकि, औदारिककाययोगसे मनयोग या वचनयोगमें जाकर एक समय रहकर दूसरे समयमें योगका व्याघात होनेसे औदारिककाययोगमें आये हुए जीवके औदारिककाययोगका एक समय अन्तर प्राप्त होता है।
शंका-औदारिकमिश्रकाययोगी तो अपर्याप्त अवस्थामें होता है जब कि जीवके मनयोग और वचनयोग होता ही नहीं है, अतएव औदारिकमिश्रकाययोगका एक समय अन्तर किस प्रकार हो सकता है ?
समाधान नहीं; हो सकता है, क्योंकि औदारिकमिश्रकाययोगसे एक विग्रह करके कार्मिक योगमें एक समय रहकर दूसरे समयमें औदारिकमिश्रयोगमें आये हुए जीवके औदारिकमिश्रकाययोगका एक समय अन्तर प्राप्त हो जाता है।
औदारिककाययोगी व औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर सातिरेक तेतीस सागरोपमप्रमाण होता है ॥ ६७॥
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