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छक्खंडागमै खुद्दाबंधौ
[२, ३, २८. जहण्णेण वासपुधत्तं ॥ २८ ॥ कुदो ? वासपुधत्तादो हेट्ठा आउअस्स जहण्णद्विदिवंधाभावादो । उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियढें ॥ २९॥ मिच्छादिट्ठीणमणंतसंसाराणमेत्थ संभवादो ।
अणुदिस जाव अवराइदविमाणवासियदेवाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ३०॥
सुगमं ।
जहण्णेण वासपुधत्तं ॥ ३१ ॥ कुदो ? सम्मादिट्ठीणं वासपुधत्तादो हेट्ठा आउअस्स जहण्णहिदिबंधामावादो । उक्कस्सेण बे सागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥३२॥
कमसे कम वर्षपृथक्त्व काल तक नौ ग्रैवेयक विमानवासी देवोंका अन्तर होता है ।। २८ ॥
क्योंकि, नौ ग्रैवेयक विमानवासी देव वर्षपृथक्त्वसे नाचेकी जघन्य आयुस्थिति बांधते ही नहीं है।
___ अधिकसे अधिक असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण अनन्त काल तक नौ अवेयक विमानवासी देवोंका अन्तर होता है ॥ २९ ॥
क्योंकि, जिन्हें अभी अनन्त काल तक संसारमें परिभ्रमण करना शेष है, ऐसे मिथ्यादृष्टि जीवोंका भी नौ ग्रैवेयकोंमें उत्पन्न होना संभव है।
अनुदिश आदि अपराजित पर्यन्त विमानवासी देवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ३०॥
यह सूत्र सुगम है।
कमसे कम वर्षपृथक्त्व काल तक अनुदिश आदि अपराजित पर्यन्त विमानबासी देवोंका अन्तर होता है ॥ ३१ ॥
क्योंकि, सम्यग्दृष्टि जीवोंके आयुका जघन्य स्थितिबंध भी वर्षपृथक्त्वसे नीचे नहीं होता।
अधिकसे अधिक सातिरेक दो सागरोपमप्रमाण काल तक अनुदिशादि अपराजित पर्यन्त विमानवासी देवोंका अन्तर होता है ॥ ३२॥
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