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१८८] छवखंडागमे खुद्दाबंधी
[२, ३, ३. पुणो णिरएसुववण्णस्स जहण्णेणतोमुहुत्तं तरुवलंभादो ।
उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियढें ॥३॥
णेरइयस्स णिरयादो णिग्गंतूण अणप्पिदगदीसु आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तपोग्गलपरियट्टे परियट्टिदूण पच्छा णिरएसुववण्णस्स वुतिरुवलंभादो ।
एवं सत्तसु पुढवीसु णेरड्या ॥ ४ ॥
णेरइया इदि वुत्ते णेरइयाणं ति घेत्तव्यं । सत्तसु पुढवीसु णेरइयाणं तिरिक्खमणुस्सगभोवक्कतियपज्जत्तएसुप्पज्जिय सधजहण्णमंतोमुहुत्तमच्छिय अप्पिदणिरएसुप्पण्णस्स अंतरकालो सरिसो ति युत्तं होदि ।
तिरिक्खगदीए तिरिक्खाणमंतरं केवचिरं कालादोहोदि ? ॥५॥ सुगमं ।
हुए नारकी जीवके नरकगतिसे अन्तर्मुहूर्तमात्र अन्तर पाया जाता है।
अधिकसे अधिक असंख्यात पुदलपरिवर्तनप्रमाण अनन्त काल तक नरकगतिसे नारकी जीवोंका अन्तर होता है ॥ ३ ॥
क्योंकि, नारकी जीवके नरकसे निकल कर अविवक्षित गतियों में आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण पुद्गलपरिवर्तन परिभ्रमण करके पश्चात् पुनः नरकोंमें उत्पन्न होनेपर सूत्रोक्त अन्तरका प्रमाण पाया जाता है।
इस प्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी जीवोंका नरकगतिसे अन्तर होता है ॥४॥
सूत्रमें जो ‘णरइया' अर्थात् 'नारकी' ऐसा प्रथमान्त पद है उससे 'रइयाणं' अर्थात् 'नारकी जीवोंका' ऐसा सम्बन्धसूचक अर्थ ग्रहण करना चाहिये । सातों ही पृथिवियों में नारकी जीवोंके गर्भोपक्रान्तिक पर्याप्त तिर्यंचों व मनुष्यों में उत्पन्न होकर सबसे कम अन्तर्मुहूर्त काल रहकर विवक्षित नरकोंमें उत्पन्न हुए जीवका अन्तरकाल सदृश ही होता है, ऐसा प्रस्तुत सूत्रके द्वारा कहा गया है।
तिर्यंचगतिसे तिर्यंच जीवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ५ ॥ यह सूत्र सुगम है।
१ प्रतिषु 'होति ' इति पाठः ।
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