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२, २, १९३.] एगजीवेग कालाणुगमे खइयसम्माइटिकालपरूवणं
कुदो ? तिण्णि करणाणि कादूण पढमसम्मतं घेत्तूग अंतोमुहुत्तमच्छिय वेदगसम्मत्तं पडिवज्जिय तत्थ तीहि पुचकोडीहि समहियवादालीससागरोवमाणि गमिय खइयं पट्ठविय चउवीससागरोवमाउढिदिएसु देवेसुप्पज्जिय पुणो पुवकोडि आउद्विदि. मणुस्सेसुप्पज्जिय अवसाणे अबंधगत्तं गयस्स तदुवलंभादो।।
खइयसम्माइट्ठी केवचिरं कालादो होति ? ॥ १९१ ॥ सुगमं । जहाणेण अंतोमुहुत्तं ॥ १९२॥
कुदो ? वेदगसम्मादिहिस्स दसणमोहणीय खविय खइयसम्मत्तं पडिवज्जिय जहण्णकालेण अबंधगत्तं गयस्स तदुवलंभादो ।
उक्कस्सेण तेत्तीससागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥ १९३ ॥ कुदो ? चउवीससंतकम्मियसम्माइट्ठिदेवस्स णेरइयस्स वा पुनकोडाउअमणुस्सेसु
क्योंकि, किसी जीवने तीनों करण करके प्रथम सम्यक्त्व ग्रहण किया और
काल रहकर वेदकसम्यक्त्व धारणकर लिया। वहां तीन कोटि अधिक ब्यालीस सागरोपम काल व्यतीत करके क्षायिकसम्यक्त्व स्थापित किया और चौबीस सागरोपम आयुस्थितिवाले देवों में उत्पन्न हुआ। इसके पश्चात् पूर्व कोटि आयुस्थितिवाले मनुष्यों में उत्पन्न होकर आयुके अन्त समयमें अबन्धकभाव प्राप्त कर लिया। ऐसे जीवके सम्यग्दर्शनका सातिरेक (चार पूर्वकोटि अधिक) छयासठ सागरोपमप्रमाण काल प्राप्त हो जाता है।
जीव क्षायिकसम्यग्दृष्टि कितने काल तक रहते हैं ? ॥ १९१ ॥ यह सूत्र सुगम है। कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव क्षायिक पम्यग्दृष्टि रहते हैं ॥ १९२ ॥
क्योंकि, वेदकसम्यग्दृष्टि जीवके दर्शनमोहनीयका क्षपण करके क्षायिकसम्यपत्वको उत्पन्न कर जघन्य कालसे अयन्धकभावको प्राप्त होनेपर अन्तर्मुहूर्त काल पाया जाता है।
अधिकसे अधिक सातिरेक तेतीस सागरोपमप्रमाण काल तक जीव क्षायिकसम्यग्दृष्टि रहते हैं । १९३ ॥
क्योंकि, जब चौबीस कर्मीकी सत्तावाला सम्यग्दृष्टि देव या नारकी पूर्वकोटि
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