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________________ १६८] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, २, १५०. पुच्चकोडी संजमासंजमस्स कालो त्ति वत्तव्वं । सामाइय-छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदा केवचिरं कालादो होति ? ॥१५॥ सुगमं । जहण्णेण एगसमओ ॥ १५१ ॥ उबसमसेडीदो ओयरमाणस्स सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजमादो सामाइय-च्छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजमं पडिवज्जिय तत्थ एगसमयमच्छिय बिदियसमए मुदस्स एगसमओवलंभादो। उक्कस्सेण पुवकोडी देसूणा ॥ १५२ ॥ पुब्धकोडाउअमणुस्सस्स गम्भादिअहवस्सेहि सामाइय-च्छेदोवढाणियसुद्धिसंजमं पडिवज्जिय अहवस्सूणपुव्वकोडिं विहरिय देवेसुप्पण्णस्स तदुवलंभादो । सुहमसांपराइयसुद्धिसंजदा केवचिरं कालादो होति ? ॥१५३॥ संयमासंयमका काल होता है, ऐसा कहना चाहिये। जीव सामायिक छेदोपस्थापनशुद्धिसंयत कितने काल तक रहते हैं ? ॥१५॥ यह सूत्र सुगम है। कमसे कम एक समय तक जीव सामायिक छेदोपस्थापनशुद्धिसंयत रहते उपशमश्रेणीसे उतरनेवाले जीवके सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयमसे सामायिकछेदोपस्थापनशुद्धिसंयमको प्राप्त कर और उसमें एक समय तक रहकर द्वितीय समयमें मरनेपर एक समय पाया जाता है। अधिकसे अधिक कुछ कम पूर्वकोटि वर्षप्रमाण काल तक जीव सामायिकछेदोपस्थापनशुद्धिसंयत रहते हैं ॥ १५२ ॥ पूर्वकोटि वर्षप्रमाण आयुवाले मनुष्यके गर्भादि आठ वर्षांसे सामायिकछेदोपस्थानिकशुद्धिसंयमको प्राप्त कर और आठ वर्ष कम पूर्वकोटि वर्ष तक विहार करके देवों में उत्पन्न होनेपर वह सूत्रोक्त काल पाया जाता है । जीव मूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयत कितने काल तक रहते हैं ? ॥१५३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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