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छक्खंडागम खुदाबंधी
[ २, २, १४५. जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ १४५॥
दोसु संजदेसु परिणामपञ्चएणुप्पाइदकेवल-मणपज्जवणाणेसु सबजहणं कालं तेहि सह अच्छिय असंजममबंधयभावं गदेसु एदस्सुवलंभादो ।
उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणा ॥ १४६॥
कुदो ? गम्भादिअहवस्सेहि संजमं पडिवज्जिय आभिणिवोहिय-सुदणाणाणि उप्पाइय अंतोमुहुत्तेण मणपज्जवणाणमुप्पाइय पुवकोडिं विहरिय देवेमुप्पण्णस्स देसूण पुव्यकोडिकालोवलंभादो । एवं केवलणाणिस्स वि उक्कस्सकालो वत्तव्यो । णवरि देवेहिंतो णेरइएहिंतो वा आगंतूण पुवकोडाउएसु खइयसम्मत्तेण सह उप्पज्जिय गम्भादिअट्ठवम्सेहि संजमं पडिवज्जिय अंतोमुहुत्तमच्छिय केवलणाणमुप्पाइय देसूणपुबकोडिं विहरिय अबंधगत्तं गदस्स वत्तव्यं ।
संजमाणुवादेण संजदा परिहारसुद्धिसंजदा संजदासजदा केवचिरं कालादो होति ? ॥ १४७ ॥
कमसे कम अन्तर्मुहूर्त तक जीव मनःपर्ययज्ञानी और केवलज्ञानी रहते हैं
क्योंकि, दो संयत जवि के परिणामोंके निमित्तसे केवल शान व मनःपर्ययज्ञानको उत्पन्न करके और सर्वजघन्य काल तक उनके साथ रहकर असंयम एवं अबन्धक भावको प्राप्त होनेपर यह काल पाया जाता है ।
अधिकसे अधिक कुछ कम पूर्वकोटि वर्ष तक जीव मनःपर्ययज्ञानी और केवलज्ञानी रहते हैं ।। १४६ ॥
क्योंकि, गर्भसे आदि लेकर आठ वर्षोंसे संयमको प्राप्त कर, अन्तर्मुहूर्तसे मनःपर्ययज्ञानको उत्पन्न कर और पूर्वकोटि वर्ष तक विहार करके देवों में उत्पन्न हुए जीवके कुछ कम पूर्वकोटि काल पाया जाता है इसी प्रकार केवलज्ञानीका भी उत्कृष्ट काल कहना चाहिये । विशेष यह है कि देवों या नारकियोंमेंसे आकर, पूर्वकोटि आयुवाले मनुप्योंमें क्षायिकसम्यक्त्वके साथ उत्पन्न होकर, गर्भसे आदि लेकर आठ वर्षांसे संयमको प्राप्त कर, अन्तर्मुहूर्त रहकर, केवलशान उत्पन्न कर और कुछ कम पूर्वकोटि तक विहार करके अबन्धक अवस्थाको प्राप्त हुए जीवके कुछ कम पूर्वकोटि काल पाया जाता है, ऐसा कहना चाहिये।
- जीव संयममार्गणानुसार संयत, परिहारशुद्धिसंयत और संयतासंयत कितने काल तक रहते हैं ? ॥ १४७ ॥
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