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________________ २, २, ९७.] एगजीवेण कालाणुगमे मण-वचिजोगिकालपरूवणं जोगाणुवादेण पंचमणजोगी पंचवचिजोगी केवचिरं कालादो होंति ? ॥ ९६॥ 'जोगिणो' इदि वयणादो बहुवयणणिदेसो किण्ण कदो ? ण, पंचण्हं पि एयत्ताविणाभावेण एयवयणुववत्तीदो। सेसं सुगमं । जहण्णण एयसमओ ॥ ९७ ॥ मणजोगस्स ताव एगसमयपरूवणा कीरदे। तं जहा- एगो कायजोगेण अच्छिदो कायजोगद्धाए खएण मगजोगे आगदो, तेणेगसमयमच्छिय बिदियसमये मरिय कायजोगी जादो । लद्धो मणजोगस्स एगसमओ । अधवा कायजोगद्धाखएण मणजोगे आगदे विदियसमए वाघादिदस्स पुणरवि कायजोगो चेत्र आगदो। लद्धो बिदियपयारेण एगसमओ। एवं सेसाणं चदुहं मणजोगाणं पंचण्हं वचिजोगाणं च एगसमयपरूवणा दोहि पयारेहि णादण कायव्वा । ___योगमार्गणानुसार जीव पांच मनोयोगी और पांच वचनयोगी कितने काल तक रहते हैं ? ॥ ९६॥ शंका-'जोगिणो' इस प्रकारके वचनसे यहां यहुवचनका निर्देश क्यों नहीं किया? समाधान- - नहीं किया, क्योंकि पांचोंके ही एकत्यके साथ अधिनाभाव होनेसे यहां एकवचन उचित है। शेष सूत्रार्थ सुगम है। कमसे कम एक समय तक जीव पांच मनोयोगी और पांच वचनयोगी रहते हैं ॥९७ ॥ प्रथमतः मनोयोगके एक समयकी प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार है-- एक जीव काययोगसे स्थित था, वह काययोगकालके क्षयसे मनोयोगमें आया, उसके साथ एक समय रहकर व द्वितीय समयमें मरकर काययोगी हो गया। इस प्रकार मनोयोगका जघन्य काल एक समय प्राप्त हो जाता है। अथवा काययोगकालके क्षयसे मनोयोगके प्राप्त होनेपर द्वितीय समयमें व्याघातको प्राप्त हुए उसको फिर भी काययोग ही प्राप्त हुआ। इस तरह द्वितीय प्रकारसे एक समय प्राप्त होता है। इसी प्रकार शेष चार मनोयोगों और पांच वचनयोगोंके भी एक समयकी प्ररूपणा दोनों प्रकारोंसे मानकर करना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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