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षट्खंडागमकी प्रस्तावना पाहुड़ोंमेंसे छठे पाहुड बन्धन के बन्ध, बन्धनीय, बन्धक और. बन्धविधान नामक चार अधिकारों में से 'बन्धक ' अधिकारसे इसः खंडकी उत्पत्ति हुई है।
कर्मबन्धके कती हैं जीव जिनकी प्ररूपणा जीवट्ठाण खण्डमें सत् संख्या आदि आठ अनुयोग द्वारोंके भीतर मिथ्यात्वादि चौदह गुणस्थानों द्वारा व गति आदि चौदह मार्गणाओंमें की जा चुकी है। प्रस्तुत खण्डमें उन्हीं जीवोंकी प्ररूपणा स्वामित्त्वादि ग्यारह अनुयोगों द्वारा गुणस्थान विशेषणको छोड़कर मार्गणास्थानों में की गई है। यही इन दोनों खण्डोंमें विषय प्रतिपादनकी विशेषता है। इस खण्ड के ग्यारह अनुयोग द्वारोंका नामनिर्देश स्वामित्त्वानुगाके दूसरे सूत्रमें किया गया है जिनके नाम हैं - (१) एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व (२) एक जीवकी अपेक्षा काल ( ३) एक जीवकी अपेक्षा अन्तर (४) नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय (५) द्रव्यप्रमाणानुगम (६) क्षेत्रानुगम (७) स्पर्शनानुगम (८) नाना जीवोंकी अपेक्षा काल (९) नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर (१०.] भागाभागानुगम और (११) अल्पबहुत्वानुगम.। इनसे . पूर्व प्रास्ताविक रूपसे बंधकोंके सत्त्वकी भी प्ररूपणा की गई है
और अन्तमें ग्यारहों अनुयोगद्वारोकी चूलिका रूपसे ' महादंडक ' दिया गया है। इस प्रकार यद्यपि खुद्दाबन्धके प्रधान ग्यारह ही अधिकार माने गये हैं, किन्तु यथार्थतः उसके भीतर तेरह अधिकारोंमें सूत्र रचना पाई जाती है जिनके विषयका परिचय इस प्रकार है
बन्धक-सच्चप्ररूपणा इस प्रस्तावना रूप प्ररूपणा केवल. ४३. सूत्र हैं जिनमें चौदह मार्गणाओं के भीतर कौन जीव कर्म बन्ध करते हैं और कौन नहीं करते यह बतलाया गया है। सब मार्गणाओंका मथितार्थ. यह. निकलता है कि जहां तक योग अर्थात् मन वचन कायकी क्रिया विद्यमान है वहां तक सब जीव बन्धक हैं, केवल अयोगी मनुष्य और सिद्ध अबन्धक हैं ।
१ एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व इस अधिकारमें ९१ सूत्र हैं जिनमें बतलाया गया है कि मार्गणाओं सम्बन्धी गुण व पर्याय जीवके कौनसे भावोंसे प्रकट होते हैं । इनमें सिद्धगति व तत्सम्बन्धी अकायत्व आदि गुण, केवलज्ञान, केवलदर्शन व अलेश्यत्व तो क्षायिक लब्धिसे उत्पन्न होते हैं । एकेन्द्रिय आदि पांचों जातियां, मन वचन काययोग, मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय ज्ञान, परिहारशुद्धि संयम, चक्षु, अचक्षु व अवधि दर्शन, सम्यग्मिथ्यात्व और संज्ञित्व ये क्षयोपशम लब्धिजन्य हैं। अपगतवेद, अकषाय, सूक्ष्मसाम्पराय व यथाख्यात संयम, ये औषशमित तथा क्षायिक लब्धिसेप्रकट होते हैं । सामायिक व छेदोपस्थापन संयम औरः सम्यग्दर्शन औषशमिक, क्षायिक व
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