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१४६] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, २, ७९. जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥ ७९ ॥ एदं पि सुगमं । उक्कस्सेण संखेज्जाणि वाससहस्साणि ॥ ८ ॥
अणप्पिदकायादो आगंतूण बादरपुढवि-बादरआउ-बादरतेउ बादरवाउ-बादरवणप्फदिपत्तेयसरीरपज्जत्तएसु जहाकमेण बावीसवस्ससहस्स-सत्तवस्ससहस्स-तिण्णिदिवसतिण्णिवस्ससहस्स-दसवस्ससहस्साउएसु उप्पज्जिय संखेज्जवस्ससहस्साणि तत्थच्छिय णिग्गदस्स तदुवलंभादो ।
बादरपुढवि-बादरआउ-वादरतेउ-बादरवाउ-बादरवणफदिपत्तेय-- सरीरअपज्जता केवचिरं कालादो होति ? ॥ ८१ ।।
सुगमं । जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ ८२॥
कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव बादर पृथिवीकायिक आदि पर्याप्त रहते हैं ।। ७९ ॥
यह सूत्र भी सुगम है।
अधिकसे अधिक संख्यात हजार वर्षों तक जीव बादर पृथिवीकायिकादि पर्याप्त रहते हैं ।। ८० ॥
____ अविवक्षित कायसे आकर बादर पृथिवीकायिक, यादर अप्कायिक, बादर तेजकायिक, बादर वायुकायिक और बादर वनस्पति कायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्तकोंमें यथाक्रमसे बाईस हनार वर्ष, सात हजार वर्ष, तीन दिवस, तीन हजार वर्ष व दश हजार वर्षकी आयुवाले जीवोंमें उत्पन्न होकर व संख्यात हजार वर्षों तक उसी पर्यायमें रहकर निकलनेवाले जीवके सूत्रोक्त प्रमाण काल पाया जाता है।
जीव बादर पृथिवीकायिक, बादर अपकायिक, बादर तेजकायिक, बादर वायुकायिक, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त कितने काल तक रहते हैं ? ॥८१॥
यह सूत्र सुगम है। ___ कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण काल तक जीव बादर पृथिवीकायिक आदि अपर्याप्त रहते हैं ॥ ८२ ॥
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