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________________ २, २, १७.] एगजीवेण कालाणुगमे तिरिक्खकालपरूवणं . [१२३ अणिदिएहितो' आगंतूण पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्त-पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीसु उप्पज्जिय जहाकमेण पंचाणउदि-सत्तेत्तालीस-पण्णारसपुचकोडीओ परिभमिय दाणेण दाणाणुमोदणेण वा तिपलिदोवमाउद्विदिएसु तिरिक्खेसु उप्पज्जिय सगआउद्विदिमच्छिय देवेसु उप्पण्णस्स एत्तियमेत्तकालस्सुवलंभादो । कधं तिरिक्खेसु दाणस्स संभवो? ण, तिरिक्खसंजदासंजदाणं सचित्तभंजणे गहिदपच्चक्खाणं सल्लइपल्लवादि देंततिरिक्खाणं तदविरोधादो । इस्थि-पुरिस-णqसयदेसु अट्टहपुनकोडीओ अच्छदि त्ति कधं णव्यदे ? आइरियपरंपरागय उवदेसादो। पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्ता केवचिरं कालादो होंति ॥ १६॥ सुगममेदं । जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ १७॥ क्योंकि, पंचेन्द्रियों को छोड़ एकेन्द्रिय आदि अन्य जातीय जीवोमंसे आकर पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यच पर्याप्त व पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती जीवोंमें उत्पन्न होकर क्रमशः पंचानवे, सैंतालीस व पन्द्रह पूर्वकोटिप्रमाण काल तक परिभ्रमण करके दान देनेसे अथवा दानका अनुमोदन करनेसे तीन पल्योपमकी आयुस्थितिवाले भोगभूमिक तिर्यंचों में उत्पन्न होकर अपनी आयुस्थितिमात्र वहां रहकर देवों में उत्पन्न होनेवाले जीवके सूत्रोक्त काल घटित होता पाया जाता है। शंका-तिर्यंचों में दान देना कैसे संभव हो सकता है ? । समाधान-नहीं, क्योकि, जो तियेच संयतासंयत जीव सचित्तभंजनके प्रत्याख्यान अर्थात् ब्रतको ग्रहणकर लेते हैं उनके लिये शल्लकीके पत्तों आदिका दान करनेवाले तिर्योंके दान देना मान लेनेमें कोई विरोध नहीं आता। शंका-स्त्री, पुरुष व नपुंसक वेदी पंचेन्द्रिय तिर्यचौमें आठ आठ पूर्वकोटिप्रमाण काल तक ही जीव रहता है यह कैसे जाना जाता है ? समाधान- आचार्यपरम्परागत उपदेशसे । जीव पंचेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्त कितने काल तक रहते हैं ? ॥१६॥ यह सूत्र सुगम है। कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण काल तक जीव पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त रहते हैं ॥ १७॥ १ प्रतिषु · अणिदिएहितो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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