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२, २, ६. ]
एगजीवेण कालानुगमे रइयकाल परूवणं
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पढमा पुढवीए रइया केवचिरं कालादो होंति ? ॥ ४ ॥ 'केवचिरं' सो समय खण-लब- मुहुत्त-दिवस- पक्ख-मास-उड्डु अयण-संवच्छर-जुगपुव्व - पल्ल - सागरोवमादीणि अवेक्खदे । सेसं सुगमं ।
जहणेण दसवास सहस्साणि ॥ ५ ॥ सुगममेदं णिरओघम्मि परुविदत्तादो ।
उक्कस्सेण सागरोवमं ॥ ६ ॥
पढमाए पुढवीए सागरोवमाउडिदिं वंधिदूण पढमाए पुढवीए उप्पज्जिय सगट्ठिदिमणुपालय णिपिडिदतिरिक्ख- मणुस्सेसु तदुवलंभादो । एदं पढमाए पुढत्रीए वृत्तजहण्णुक्कस्साउअं सीमंत- णिरय रोरुअ- मंत- उमंत-संभंत असं मंत-विभूत-तत्त-तसिदवक्कंत-अवक्कंत-विक्कंतसण्णिदतेरसण्हर्मिदयाणं ससेडीबद्ध-पइण्णयाणं किमेवं चेव होदि आहो ण होदि ति ? एदेसि सव्वेसिं एदं चैव जहण्णुक्कस्साउअं ण होदि, किंतु
प्रथम पृथिवीमें नारकी जीव कितने काल तक रहते हैं ? ॥ ४ ॥
'कितने काल तक' यह शब्द समय, क्षण, लब, मुहूर्त, दिवस, पक्ष, मास, ऋतु, संवत्सर, युग, पूर्व, पल्य व सागर आदि कालमानोंकी अपेक्षा रखता है । प्रथम पृथिवीमें नारकी जीव कमसे कम दश हजार वर्ष तक रहते हैं ॥ ५ ॥ यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, इसकी प्ररूपणा ओघ नारकियोंकी प्ररूपणामें की
जा चुकी है।
अयन,
प्रथम पृथिवी में नारकी जीव अधिक से अधिक एक सागरोपम तक रहते है ॥ ६ ॥
क्योंकि, प्रथम पृथिवीकी एक सागरोपम आयुस्थितिको बांधकर प्रथम पृथिवीमें उत्पन्न होकर व अपनी स्थितिको पूरी करके वहांसे निकलनेवाले तिर्यंच व मनुष्यों के एक सागरोपमकी नरकस्थिति पायी जाती है ।
शंका- यह जो प्रथम पृथिवीकी जघन्य और उत्कृष्ट आयु बतलायी गई है सो क्या सीमन्त, नरक, रौरव, भ्रान्त, उद्भ्रान्त, संभ्रान्त, असंभ्रान्त, विभ्रान्त, तप्त, त्रसित, वकान्त, अवक्रान्त और विक्रान्त नामक तेरहों इन्द्रकों तथा उनसे सम्बद्ध श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक सब विलोंकी यही आयुस्थिति होती है, या नहीं होती ?
समाधान - प्रथम पृथिवीके उक्त समस्त बिलोंकी जघन्य और उत्कृष्ट आयु
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१ प्रतिषु ' - सम्मंत असभंत - ' इति पाठः ।
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