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________________ १०४] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो [२, १, ६०. - लेस्साणुवादेण किण्हलेस्सिओ णीललेस्सिओ काउलेस्सिओ तेउलेस्सिओ पम्मलेस्सिओ सुक्कलेस्सिओ णाम कधं भवदि? ॥६॥ एत्थ पुव्वं व णिक्खेवे अस्सिद्ग चालणा परूवेदव्या । एत्थ णोआगमभावलेस्साए अहियारो। ओदइएण भावेण ॥ ६१॥ कसायाणुभागफहयाणमुदयमागदाणं जहण्णफद्दयप्पहुडि जाय उक्कस्सफद्दया त्ति ठइदाणं छम्भागविहत्ताणं पढमभागो मंदतमो, तदुदएण जादकसाओ सुक्कलेस्सा णाम । विदियभागो मंदतरो, तदुदएण जादकसाओ पम्मलेस्सा णाम । तदियभागो मंदो, तदुदएण जादकसाओ तेउलेस्सा णाम । चउत्थभागो तिव्वो, तदुदएण जादकसाओ काउलेस्सा णाम । पंचमभागो तिव्ययरो, तस्सुदएण जादकसाओ णीललेस्सा णाम । छट्ठो तिव्वतमो, तस्सुदएण जादकसाओ किण्णलेस्सा णाम । जेणेदाओ छप्पि लेस्साओ कसायाणमुदएण होति तेण ओदइयाओ । जदि कसाओदएण' लेस्साओ उच्चंति तो "लेश्यामार्गणानुसार जीव कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पालेश्या और शुक्ललेश्या वाला कैसे होता है ? ॥ ६ ॥ - यहां पूर्वानुसार निक्षेपोंका आश्रय लेकर चालना करना चाहिये । प्रस्तुतमें नोआगम भावलेश्याका अधिकार है। औदयिक भावसे जीव कृष्ण आदि लेश्यावाला होता है ॥ ६१ ।। - उदयमें आये हुए कषायानुभागके स्पर्धकोंके जघन्य स्पर्धकसे लेकर उत्कृष्ट स्पर्धक पर्यंत स्थापित करके उनको छह भागोंमें विभक्त करनेपर प्रथम भाग मंदतम कषायानुभागका होता है और उसीके उदयसे जो कषाय उत्पन्न होती है उसीका नाम शुक्ललेश्या है। दूसरा भाग मन्दतर कषायानुभागका है, और उसीके उदयसे उत्पन्न हुई कषायका नाम पद्मलेश्या है। तृतीय भाग मन्द कषायानुभागका है, और उसके पसे उत्पन्न कषाय तेजोलेश्या है। चतर्थ भाग तीव्र कषायानुभागका है, और उसके उदयसे उत्पन्न कषाय कापोतलेश्या होती है। पांचवां भाग तीव्रतर कषायानुभागका है, और उसके उदयसे उत्पन्न कषायको नीललेश्या कहते हैं । छठवां भाग तीव्रतम कषाया. नुभागका है, और उससे उत्पन्न कषायका नाम कृष्णलेश्या है। चूंकि ये छहों ही लेश्यायें कषायोंके उदयसे होती हैं, इसीलिये वे औदयिक हैं। ४शंका-यदि कषायोंके उदयसे लेश्याओंका उत्पन्न होना कहा जाता है तो १ प्रतिषु ' कसाओदइएण ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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