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________________ २, १, ५९.] सामित्ताणुगमे दंसणमागणा जमवट्ठाणं सो उवसमो; तदुभयगुणसमण्णिदचक्खुदंसणावरणीयकम्मक्खंधविवागजणिदजीवपरिणामो लद्धि ति घेत्तव्यो । अचक्खुदंसणावरणीयस्स देसघादिफयाणमुदएण अचक्खुदंसणं होदि त्ति कटु खओवसमियाए लद्धीए अचक्खुदंसणमिदि उत्तं । ओधिदसणावरणीयस्स देसघादिफद्दयाणमुदयजणिदलद्धीदो ओधिदंसणी होदि ति खओव. समियाए लद्धीए ओधिदसणी णिहिट्ठो । केवलदसणी णाम कधं भवदि ? ॥ ५८ ॥ सुगममेदं । खइयाए लद्धीए ॥ ५९॥ दसणावरणीयस्स णिम्मूलविणासो खओ णाम । तत्तो जादजीवपरिणामो खड्या लद्धी । तत्तो केवलदंसणी होदि । एत्थुवउज्जती गाहा ( एवं सुत्तपसिद्ध भणंति जे केवलं ण चत्थि ति । मिच्छादिट्ठी अण्णो को तत्तो एत्थ जियलोए ॥ २२ ॥) जो उनका अवस्थान है वही उपशम है। इन्हीं क्षय और उपशम रूप दो गुणोंसे युक घनदर्शनावरणीय कर्मके स्कंधोके उदयसे जो जीवपरिणाम उत्पन्न होता है वही क्षायोपशमिक लब्धि है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये। अचक्षुदर्शनावरणीयके देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे अचक्षुदर्शन होता है, ऐसा मानकर 'क्षायोपशमिक लब्धिसे अचक्षुदर्शन होता है' ऐसा कहा गया है। अवधिदर्शनावरणीयके देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे उत्पन्न हुई लब्धि द्वारा अवधिदर्शनी होता है, इसीसे क्षायोपशमिक लब्धिसे अवधिदर्शनीके होनेका निर्देश किया गया है। जीव केवलदर्शनी कैसे होता है ? ॥५८॥ यह सूत्र सुगम है। क्षायिक लन्धिसे जीव केवलदर्शनी होता है ॥ ५९॥ दर्शनावरणीय कर्मका निर्मूल विनाश क्षय है। उस क्षयसे उत्पन्न जीवपरिणामको क्षायिक लब्धि कहते हैं । उसी क्षायिक लब्धिसे केवलदर्शनी होता है। यहां यह उपयोगी गाथा है इस प्रकार सूत्र द्वारा प्रसिद्ध होते हुए भी जो कहते हैं कि केवलदर्शन नहीं है उनसे बड़ा इस जीवलोकमें कौन मिथ्यात्वी होगा? ॥ २२॥ . ... . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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