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________________ २, १, ४८.] सामित्ताणुगमे संजममग्गणा [९१ द्विदाणमुवलंभादो । ण च उवलंभमाणे विरोहो अत्थि, अणुवलद्धिविसयस्स तस्स उवलद्धीए अस्थित्तविरोहादो । संजमाणुवादेण संजदो सामाइयच्छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदो णाम कधं भवदि ? ॥४८॥ णामसंजमो ठवणसंजमो दबसंजमो भावसंजमो चेदि चउव्विहो संजमो । णाम ढवणसंजमा गदा । दव्वसंजमो दुविहो आगम-णोआगमभेएण । आगमो गदो । णोआगमो तिविहो जाणुगसरीरणोआगमदव्यसंजम-भवियणोआगमदव्यसंजम-तव्वदिरित्तणोआगमदव्यसंजमभेएण । जाणुग-भवियाणि' गदाणि । तव्वदिरित्तदव्यसंजमो संजमसाहणपिच्छाहार-कवली-पोत्थयादीणि । भावसंजमो दुविहो आगम-णोआगमभेएण। आगमो गदो । णोआगमो तिविहो खइओ खओवसमिओ उपसमिओ चेदि । एदेसु संजमपयारेसु केण पयारेण संजमो होदि त्ति पुच्छा कदा । एवं सामाइयच्छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदाणं पि णिक्खेवो कायव्यो । सर्वात्म रूपसे आलिंगन करके स्थित पाये जाते हैं । जो बात पाई जाती है उसमें विरोध नहीं रहता, क्योंकि, विरोधका विषय अनुपलब्धि है और इसलिये जहां जिस बातकी उपलब्धि होती है उसमें फिर विरोधका अस्तित्व माननेमें ही विरोध आता है। संयममार्गणानुसार जीव संयत तथा सामायिक छेदोपस्थापनशुद्धि संयत कैसे होता है ? ॥४८॥ नामसंयम, स्थापनासंयम, द्रव्यसंयम और भावसंयम, इस प्रकार संयम चार प्रकारका है । नाम और स्थापना संयम तो गये । द्रव्यसंयम आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकारका है। आगमद्रव्यसंयम भी गया। नोआगमद्रव्यसंयमके तीन भेद हैं-नायकशरीर नोआगमदव्यसंयम, भव्य नोआगमद्रव्यसंयम और तदव्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यसंयम। ज्ञायकदारीर और भव्य श्री गये। तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्य संयम संयमके साधनभूत पिच्छिका, आहार, कमण्डलु (?) पुस्तक आदिको कहते हैं। __ भावसंयम आगम और नोभागमके भेदसे दो प्रकारका है। आगमभावसंयम गया । नोआगमभावसंयम तीन प्रकारका है- क्षायिक, क्षायोपशमिक और औपशामिक । इन संयमोंके प्रकारों से किस प्रकारसे संयम होता है यह प्रश्न किया गया है। इसी प्रकार सामायिक और छेदोपस्थापना शुद्धिसंयतोंका भी निक्षेप करना चाहिये। २ प्रतिघु ' -भविय ' इति पाठः। १ प्रतिषु · विरोहा' इति पाठः। ३ कप्रती 'केवलीपोत्थयादीणि ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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