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________________ ८५] छक्खंडागमे खुद्दाबंधी [२, १, ४५. गाणं तमण्णाणमिदि भण्णइ, णाणफलाभावादो । घड पडत्थंभादिसु मिच्छाइट्ठीणं जहावगमं सद्दहणमुवलम्भदे चे? ण, तत्थ वि तस्स अणज्झवसायदंसणादो । ण चेदमसिद्धं 'इदमेवं चेवेत्ति' णिच्छयाभावा । अधवा जहा दिसामूढो वण्ण-गंध रस-फासजहावगमं सद्दहतो वि अण्णाणी बुच्चदे जहावगमदिससदहणाभावादो, एवं थंभादिपयत्थे जहावगमं सहहंतो वि अण्णाणी वुच्चदे जिणवयणेण सदहणाभावादो। खओवसमियाए लद्धीए ॥४५॥ कधं मदिअण्णाणिस्स खओवसमिया लद्धी ? मदिअण्णाणावरणस्स देशघादिफहयाणमुदएण मदिअण्णाणित्तुवलंभादो। जदि देसघादिफदयाणमुदएण अण्णाणित्तं होदि तो तस्स ओदइयत्तं पसज्जदे ? ण, सव्वघादिफद्दयाणमुदयाभावा । कधं पुण खओव पदार्थमें श्रद्धान नहीं उत्पन्न होता, वहां जो ज्ञान होता है वह अज्ञान कहलाता है, क्योंकि, उसमें ज्ञानका फल नहीं पाया जाता। शंका-घट, पट, स्तंभ आदि पदार्थों में मिथ्यादृष्टियोंके भी यथार्थ ज्ञान और श्रद्धान पाया तो जाता है ? समाधान नहीं पाया जाता, क्योंकि, उनके उस शानमें भी अनध्यवसाय अर्थात् अनिश्चय देखा जाता है। यह बात असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि, 'यह ऐसा ही है' ऐसे निश्चयका वहां अभाव होता है। ___ अथवा, यथार्थ दिशाके सम्बन्ध विमूढ जीव वर्ण, गंध, रस और स्पर्श, इन इन्द्रिय-विषयोंके ज्ञानानुसार श्रद्धान करता हुआ भी अज्ञानी कहलाता है, क्योंकि, उसके यथार्थ ज्ञानकी दिशामें श्रद्धानका अभाव है। इसी प्रकार स्तंभादि पदार्थों में यथाशान श्रद्धा रखता हुआ भी जीव जिन भगवान्के वचनानुसार श्रद्धानके अभावसे अशानी ही कहलाता है। क्षायोपशमिक लब्धिसे जीव मतिअज्ञानी आदि होता है ॥ ४५ ॥ शंका-मतिअज्ञानी जीवके क्षायोपशमिक लब्धि कैसे मानी जा सकती है ? समाधान-क्योंकि, उस जीवके मत्यज्ञानावरण कर्मके देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे मत्यज्ञानित्व पाया जाता है। शंका-यदि देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे अशानित्व होता है तो अक्षानित्वको मौदयिक भाव माननेका प्रसंग आता है ? समाधान-नहीं आता, क्योंकि वहां सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयका अभाव है ? शंका-तो फिर अशानित्वमें क्षायोपशमिकत्व क्या है ? प्रतिषु घडपडत्थंआदिसु ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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